Vedic Sabhyta Gk In Hindi : वैदिक सभ्यता का इतिहास : दोस्तों , आज हम Notes In Hindi Series में आपके लिए लेकर आये हैं वैदिक सभ्यता से सम्बन्धित सामान्य ज्ञान ! Vedic Sabhyta History Hindi से सम्बन्धित बहुत से Questions Competitive Exams में पूछे जाते हैं , यह एक बहुत ही विशेष Part आता है हमारे Gs का | तो आज हम पढेंगे Vedic Sabhyta History in Hindi,Vedic Sabhyta Gk In Hindi,Jain Dharm Ke baare Me Puri jankari के बारे में !
Contents
Vedic Sabhyta History In Hindi
- भारत में आर्यो ने लगभग ई० पू० 1500 में एक महान सभ्यता की नींव डाली ।
- आर्यों की सभ्यता का ज्ञान ‘वेदों’ से मिलता है, अत: इसे वैदिक सभ्यता कहते हैं।
- ‘मैक्समूलर’ के सर्वमान्य मत के अनुसार आर्य मध्य एशिया से आए थे।
- संस्कृत भाषा बोलने वाले आर्यों ने भारत में एक ग्रामीण सभ्यता विकसित की।
- जेंद-अवेस्ता (ईरानी धर्मग्रन्थ) में भारतीय आर्यों के देवता इन्द्र, वरूण तथा मित्र उल्लेख है।
- नदी सूक्त (ऋग्वेद) के अनुसार सिन्धु एवं उसकी 7 सहायक नदियों के इर्द-गिर्द ऋग्वैदिक सभ्यता विकसित हुई।
- उपर्युक्त के लिए ऋग्वेद में सप्तसिंधव शब्द प्रयुक्त हुआ है।
- नदी सूक्त सरस्वती एवं सिन्धु को सर्वाधिक पवित्र नदी के रूप में प्रतिष्ठित करता है।
- ऋग्वेद में सिन्धु नदी का सर्वाधिक 100 बार तथा सबसे कम गंगा (1 बार) एवं यमुना (3 बार ) का उल्लेख है।
- गोमल( गोमती ), क्रभु (कुर्रम) , सुवस्तु (स्वात) एवं सदानीरा (गंडक) आदि अन्य प्रमुख ऋग्वैदिक नदियाँ थीं।
- वर्तमान में ‘सरस्वती’ नदी राजस्थान के रेगिस्तान में विलीन हो चुकी है।
- प्रारम्भ में आर्य समुद्र से परिचित नहीं थे, तथा इसका अर्थ वे बड़ी नदियाँ समझते थे।
- ऋग्वेदिक आर्य हिमालय पर्वत से परिचित थे, इसकी एक चोटी मुंजावत पर सोम (आधुनिक भांग) नामक पौधा प्राप्त होता था।
- वैदिक काल में सम्पूर्ण उत्तर भारत के क्षेत्र को आर्यावर्त कहा जाता था।
- सोम पौधे से तैयार नशीले पेय का सेवल वाजपेय यज्ञों की समाप्ति के उपरान्त किया जाता था।
- ऋग्वेद में आर्यों की प्रमुख जनजातियों का उल्लेख पंचजन के रूप में किया गया है।
- ऋग्वेद के 7 वें मण्डल में पुरूषणी (रावी) नदी के किनारे हुए प्रसिद्ध दशराज का विवरण प्राप्त होता है।
- दशराज युद्ध भरतवंशी राजा सुदास एवं 10 राजाओं के एक संघ के बीच हुआ।
- दशराज युद्ध में सुदास को वाल्मीकि एवं 10 राजाओं के संघ को विश्वमित्र का समर्थन प्राप्त था।
- दशराज युद्ध में सुदास की विजय हुई।
- हमारे देश का नाम भारतवर्ष आर्यों के ‘भारतवंशी’ राजा भरत के नाम पर पड़ा।
- वैदिक सभ्यता के दो काल हैं – 1 ऋग्वेदिक काल (ई० पू० 1500-1000), उत्तर वैदिक काल (ई० पू० 1000-600)। ऋग्वैदिक समाज पुरोहित (ब्राम्हण), राजन्य (क्षत्रिय) वैश्य (कृषक, कारीगर, व्यापारी) तथा शूद्र (दास तथा अनार्य) में वर्गीकृत था।
ऋग्वैदिक सप्तसिंधव नदियाँ
प्राचीन नाम | आधुनिक नाम | |
२. | शतुद्रि | सतलज |
३. | विपश | ब्यास |
४. | पुरूषणी | रावी |
५. | अस्किनी | चिनाब |
६. | वितस्ता | झेलम |
७. | सरस्वती | चितंग |
८. | दृश्द्वती | घग्गर |
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- ‘शूद्र’ शब्द का प्रथम प्रयोग पुरूष सूक्त (मंडल-X, ऋग्वेद) में किया गया है।
- आर्यों का समाज पितृसत्तात्मक था तथा ‘ परविार’ सामाजिक जीवन की इकाई थी।
- आर्यों के समाज में परिवार के मुखिया को कुलप्पा कहा जाता था।
- समाज में सती प्रथा एवं पर्दा प्रथा का अस्तित्व नहीं था।
- स्त्रियों को वेदों का अध्ययन करने तथा अपने पति के साथ सार्वजनिक सभाओं तथा उत्सवों में भाग लेने का अधिकार था।
- ऋग्वैदिक काल की कुछ स्त्रियाँ विश्ववरा, अपाला, घोष एवं लोपमुद्रा वैदिक मंत्रों की रचना करने के लिए जानी जाती है।
- आर्यों ने स्वयं को द्विज (दो बार जन्में) एक बार तब जब वे माता के पेट से उत्पन्न होते हैं तथा दूसरी बार तब जब उनका उपनयन संस्कर होता है।
- इस काल में विधवा विवाह का प्रचलन तो था, परन्तु बाल-विवाह का कोई अस्तित्व नही था।
- जीवन भर अविवाहित रहने वाली महिलाएँ अमाजू कहलाती थीं।
- वास, अधिवासव तथा उष्णीश (पगड़ी) आदि आर्यों के प्रमुख पहनावे थे, अंदर पहनने वाले कपड़ों को नीवि कहा जाता था।
- आर्यों के मनोरंजन के मुख्य साधन संगीत, रथ-दौड़, द्रूत-क्रीड़ा एवं घुडदौड़ आदि थे।
- ऋग्वैदिक समाज एक कबायली- समाज था, कई परविारोंको मिलाकर एक गाँव बनता था जिसका प्रमुख ग्रामीणी होता था।
- कई ग्रामों को मिलाकर जन का निर्माण होता था।
- ऋग्वेद में ‘जन’ को उल्लेख 275 बार किया गया है।
- एक जन के सभी व्यक्ति विश् कहलाते थे तथा इसका प्रधान विशपति अथवा राजा कहलाता था।
- ऋग्वेद में विश् का उल्लेख 170 बार हुआ।
- ऋग्वैदिक काल में राजा का चुनाव होता था, प्रजा को उसे हटाने की शक्ति भी थी।
- राजा युद्धों में सेना का नेतृत्व करता था तथा उपज का 1/6 भाग वह राज्यकर के रूप में प्राप्त करता था।
- धीरे-धीरे राजा का पद पैतृक हो गया।
- ऋग्वेद के अनुसार तत्कालीन प्रशासन में राजा के पश्चात पुरोहित का पद सर्वाधिक महत्वपूर्ण था।
- पुरोहित राजा का मित्र, पथ-प्रदर्शक, दार्शनिक एवं प्रधान सहायक होता था।
- पुरोहित के बाद सर्वाधिक महत्वपूर्ण पद सेनानी राजा द्वारा नियुक्त होता था।
- उपर्युक्त के अलावा ग्रामिणी, सूत, रथकार एवं कर्मकार के उल्लेख भी ऋग््वेद से प्राप्त होते हैं।
- ग्रामीणी, सूत, रथकार एवं कर्मकार को ऋग्वेद मे सम्मिलित रूप से रत्निन कहा गया है।
- ऋग्वेद में हमें कुछ गुप्तचरों एवं समाचार-वाहकों का उल्लेख मिलता है जो स्पश कहलाते थे।
- इस कालमें उग्र अपराधियों को पकड़ने वाला पदाधिकारी तथा ब्रजापति ( राजकीय चारागाह का पदाधिकारी) जैसे पदाधिकारियों के उल्लेख भी मिलते हैं।
Vedic Sabhyta History/GK In Hindi
- ऋग्वैदिक प्रशासन में विदथ, सभा तथा समिति जैसे लोकतांत्रिक संगठनों का महत्व था।
- शतपथ ब्राह्मण में ‘सभा एवं समिति’ को प्रजापति (ब्रम्हा) की जुड़वाँ पुत्रियां कहा गया है।
- सभा एवं समिति राजा को परामर्श देने वाली संस्था थी, जबकि ‘विदभ’ आर्यों की प्राचीन सभा थी।
- सभा, श्रेष्ठ एवं संभ्रांत जनों की तथा समिति आम –जनों की सभा थी।
- पशुपालन एवं कृषि ऋग्वैदिक आर्यों के प्रमुख पेशे थे, सीमित व्यापार के उल्लेख भी प्राप्त होतें है।
- ऋग्वैदिक आर्य मूल रूप से गाय, भैंस, बैल, घोड़े तथा बकरी आदि पालते थे।
- पशुओं में गाय का सर्वाधिक महत्व था, ऋग्वेद में गाय शब्द का उल्लेख 174 बार हुआ है।
- ऋग्वेद के 24 श्लोकों में शब्द कृषि (Agriculture) का उल्लेख है।
- खेतों को जोतने के लिए हल का प्रयोग होता था, जिसमें साधारणतया 6,8 या 12 बैलों का प्रयोग होता था।
- ऋग्वेद में खाद्यान्नों को सामूहिक रूप से यव अथवा धान्य कहा गया है।
- ऋग्वेद में चावल की कृषि के प्रमाण नहीं प्राप्त होते।
- बर्तन बनाना, बुनाई,, बढ़ईगिरी, धातुकर्म एवं चर्मकारी जैसे कुछ अन्य व्यवसाय भी प्रचलन में थे।
- ऋग्वैदिक आर्यों को टिन, सीसा, चाँदी, ताँबा, काँसा तथा स्वर्ण की जानकारी थी।
- ऋग्वेद में निष्क का उल्लेख किया गया है, जो कि एक निश्चित वजन का सोनेका टुकड़ा था।
- ऋण देकर उसपर ब्याज देने वाले व्यक्ति को वेकनॉट (सूदखोर) कहा जाता था।
- ऋग्वेद में देवताओं में में इन्द्र एवं अग्नि सबसेश्रेष्ठ माने जाते थे।
- ऋग्वेद में इन्द्र की प्रार्थना में सर्वाधिक 250 सूक्त दिये गये हैं तथा इन्हें पुरंदर (दर्गों को ध्वस्त करनेवाला) कहा गया है।
- अग्नि से सम्बन्धित 200 सूक्तों का समावेश ऋग्वेद में किया गया है।
- जल के देवता ‘वरूण’ अत्यधिक महत्व था, ईरानी ग्रन्थों में इन्हें अहुरमाजदा एवं यूनानी ग्रंथों में ओरनोज कहा गया है।
- आर्यों का विस्तार उत्तर वैदिक काल में सदानीरा (गंडक) नदी एवं विंध्य पर्वत तक हुआ।
- सदानीरा नदी के किनारे विदेह माधव नामक ऋषि ने ‘विदेह’ राज्य की स्थापना की।
- उत्तर वैदिक काल में 800 ई० पू० में लोहे (Iron) की खोज हुई।
- 600 ई० पू० के हस्तिनापुर, अतरंजीखेरा, आलमगीरपुर तथा बटेसर से लोहे के व्यापक प्रयोग साक्ष्य मिले हैं।
- उत्तर वैदिक साहित्य में लोहे के लिए श्याम अयस् अथवा कृष्ण अयस् जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है।
- उत्तर वैदिक काल में मत्स्य, कुरू, पंचाल, काशी, गंधार, कैकेय, हैहेय, विदेह, अंग, मद एवं कोशल तथा मगध जैसे शक्तिशाली राज्योंका उदय हुआ।
- उत्तर वैदिक काल में हलों को खींचने के लिए 24 बैलों के प्रयोग का साक्ष्य प्राप्त होता है, कृषि कार्य में खाद का प्रयोग आरम्भ हुआ।
- उत्तर वैदिक काल में हल को सिरा एवं हल रेखा को सीता कहा जाता था।
- उत्तर वैदिक काल में चावल एवं गेहूँ (शतपथ ब्राह्मण के अनुसार) प्रमुख अनाज थे।
- ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार उत्तर वैदिक आर्य ‘समुद्र’ से परिचित थे।
- उत्तर वैदिक काल में व्यापार उन्नति पर था, श्रेष्ठी एवं गण जैसे व्यावसायिक शब्द इस बात को सिद्ध करते है।
- उत्तर वैदिक काल में स्वर्ण का सिक्का शतमान एवं ताँबे के सिक्के कृष्णात एवं पाद प्रचलन में आया।
- उत्तर वैदिक काल में वाराणसी, हस्तिनापुर तथा इन्द्रप्रस्थ जैसे कुछ नगरों का विकास हुआ।
- बालि (एक उपहार) नामक कर ऋग्वैदिक काल में लोग स्वेच्छा से अदा करते थे, उसे उत्तर वैदिक काल में अनिवार्य कर दिया गया।
- उत्तर वैदिक काल में ‘कर’ सम्भवत: कुल उपज का 1/6वाँ हिस्सा लिया जाता था।
- ऋग्वेद ‘कृष्ज्ञि सम्बन्धित देवी’के लिए सीता शब्द का उल्लेख करता है।
- उत्तर-वैदिक साहित्य में उल्लिखित भेषज् शब्द का अर्थ चिकित्सक होता था। उत्तर वैदिक काल में बड़े पैमाने पर ‘चित्रित धूसर-मृदभांड’एवं बड़े पैमाने पर लोहे के औजार प्राप्त हुए हैं।
- अत: उत्तर वैदिक काल को चित्रित धूसर मृदभांड-लौहकाल भी कहा जाता है।
- उत्तर-वैदिक काल में ‘पक्की ईंटों का प्रयोग’ का पहला प्रमाण कौशांबी नगर से मिलता है।
- उत्तर वैदिक युग राजतन्त्र के सशक्तिकरण का युग था।
- ऐतरेय ब्राह्मण में विभिनन दिशाओं के राजाओं के लिए निम्न शब्दों का प्रयोग किया गया है।
- राजा का पद अब वंशानुगत हो गया तथा उस पर सभा एवं समिति जैसी प्रभावशाली लोकतान्त्रिक संस्थाओं का नियंत्रण कमजोर हो गया।
- ऋग्वैदिक काल का ‘प्रशासनिक ढाँचा’ निम्नवत था-
- उत्तर वैदिक काल में जाति का निर्धारण पैत्रिक आधार पर किया जाने लगा।
- उत्तर वैदिक काल में छुआछूत की बुराई के आविर्भाव का प्रमाण हमतें गौतम सूत्र से मिलता है।
- उत्तर वैदिक काल में महिलाओं की स्थिति दयनीय हो गई तथा इन्हें लोकप्रिय सभाओं में भाग लेने तथा ‘उपनयन संस्कार’ से वर्जित कर दिया गया।
- उत्तर वैदिक काल के 12 राजाओं की सूची ऐतरेय ब्राह्मण से प्राप्त होती है।
- भारत के सभी रावंशों का विकास आदिराज मनु से हुआ है।
- मनु के पुत्र इक्षवाकु ने अयोध्या में सूर्य वंश की स्थापना की।
- मनु के पुत्र नेमि ने विदेह राजवंश की स्थापना ‘मिथिला’ में की।
- उपर्युक्त के अलावा हैहेय,ककुरू तथा मगध उत्तर वैदिक काल में अन्य प्रमुख राजवंश थे।
- वेश्यावृत्ति जैसे सामाजिक बुराई का अभ्युदय भी उत्तर-वैदिक काल में हुआ।
- स्त्री-शिक्षा उत्तर वैदिक काल में भी प्रचलन में नहीं, गार्गी, मैत्रेयी एवं वाचनवी जैसी विदुषियों का उल्लेख मिलता है।
- उपर्युक्त ‘अष्टविवाह’ में से पहले चार को ही धर्मसम्मत माना गया है।
- उत्तर वैदिक काल में गोत्र परम्परा का अभ्युदय हुआ तथा इसके बाहर विवाह करने की परम्परा विकसित हुई।
- उत्तर-वैदिक काल में प्राचीन भारतीय जीवन के चार महानर पुरूषार्थों धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष की प्राप्ति के लिए चार आश्रमों (ब्रह्मचर्य,गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा सन्यास ) को आधार बनाया गया।
- उत्तर वैदिक काल में 7 प्रकार के सोमयज्ञोंका प्रचलन था- अग्निष्टोम,अत्यग्निष्टो, उक्थ्य, षेडशिन्, वाजपेय्, अतिरात्र और अप्तोर्याम।
- वाजपेय यज्ञों में ‘रथ-दोड़’ प्रतियोगिता होती थी जिसमें आमतौर पर ‘राजा का रथ’ जीतता अथवा जितवाया जाता था।
- वाजपेय यज्ञों के अवसर पर सोम पौधों की पत्तियों को पीस कर तैयार किये गये नशीले पेय वाजपेय का सेवन किया जाता था।
- राज्यभिषेक के अवसर पर राजसूय यज्ञ किया जाता था।
- साम्राज्य विस्तार के लिए अश्वमेध यज्ञ किया जाता था।
- उत्तर वैदिक काल में यज्ञों की अवधि, संख्या एवं जटिलता में वद्धि हुई।
- उत्तर वैदिक काल में इन्द्रं , अग्नि एवं वरूण का स्थान प्रजापति (ब्रह्मा) , विष्णु एवं शिव ने ले लिया।
- उत्तर वैदिक काल में पशुओं के देवता पूषण को शूद्रोंके देवता का स्थान प्राप्त हुआ।
- उत्तर वैदिक काल बहुदेववाद, मूर्तिपूजा एवं षड्दर्शन का विकास हुआ।
- ऋग्वेद में सर्वप्रथम असतो मा सद्गमय का उल्लेख हुआ है।
- चारों आश्रमों का उल्लेख जबालोपनिषद में सर्वप्रथम हुआ है।
- पुनर्जन्म का सर्वप्रथम उल्लेख शतपथ ब्राह्मण से प्राप्त होता है।
- ‘गीता ’से पूर्व ‘निष्काम कर्मयाग’ का प्रतिपादन छान्दोग्योपनिषद में हुआ।
- ‘राजसूय यज्ञ’ का प्रथम उल्लेख ऐतरेय ब्राह्मण में हुआ है।
- याज्ञवल्क्य-गार्गी संवाद वृदारण्यकोपनिषद् में उल्लिखित है।
- ‘वाजस्नेय संहिता’ में वैश्य शब्द का प्रथम प्रयोग हुआ है।
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