राजपूतों का इतिहास : तोमर वंश, चौहान वंश, कलचुरी वंश, सोलंकी वंश, गहढ़वाल वंश, चन्‍देल वंश, परमार वंश

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राजपूतों का इतिहास : तोमर वंश, चौहान वंश, कलचुरी वंश, सोलंकी वंश, गहढ़वाल वंश, चन्‍देल वंश, परमार वंश 

Notes In Hindi Series में आज हम आपसे तोमर वंश, चौहान वंश, कलचुरी वंश, सोलंकी वंश, गहढ़वाल वंश, चन्‍देल वंश, परमार वंश के बारें में बात करने वाले हैं | जैसा कि आपको पता ही है हम दिन प्रतिदिन आपको इतिहास विषय से सम्बन्धित जानकारी लेते हैं |

राजपूतों का इतिहास : Origin Of Rajputs In Hindi

  • प्राचीन भारतीय इतिहास में हर्ष की मृत्‍यु के पश्‍चात्‍ से 1200 ई० तक के काल को राजपूत युग के नाम से जाना जाता है।
  • राजपूत शब्‍द का प्रयोग सर्वप्रथम सातवीं शताब्‍दी में ही मिलता है।
  • ‘राजपूत’ शब्‍द संस्‍कृत के राजपुत्र शब्‍द का अपभ्रंश है।
  • राजतरंगिणी में राजपूतों के 36 कुलों का विवरण मिलता है।
  • राजपूत शासकों के बारे में जानकारी के मुख्‍य स्‍त्रोतों में गवालियर प्रशस्ति, ऐहोल अभिलेख, नयचंद्रसूरी का हम्‍मीरकाव्‍य, पद्मगुप्‍त द्वारा रचित नवसाहशांकचरित् आदि हैं।

गुर्जर प्रतिहार वंश 

गुर्जर-प्रतिहार वंश के प्रमुख शासक

 शासक  शासनकाल (ई०)
 नागभट्ट प्रथम  730-756
 वत्‍सराज  783-833
रामभद्र  833-836
महेन्‍द्रपाल  890-910
 महेन्‍द्रपाल-।।  943-946
 विनाकपाल-।।  953-954
 विजयपाल  960
 कुक्‍कुक्‍ एवं देवराज   756-783
 नागभट्ट  795-833
 मिहिरभोज  836-889
 महिपाल  914-943
महिपाल-।।  955
 देवपाल 948-949

 

  • नागभट्ट प्रथम ने गुर्जर प्रतिहार वंश की स्‍थापना 730 ई० में की।
  • नागभट्ट प्रथम मालवा का शासक था।
  • वत्‍सराज, नागभट्ट द्वितीय, महीपाल, महेन्‍द्रपाल, मिहिरभोज, राज्‍यपाल इस वंश के प्रमुख शासक थे।
  • वत्‍सराज ने पाल वंश के शासक धर्मपाल को पराजित किया।
  • इस वंश का शासक नागभट्ट द्वितीय महान विजेता था, उसने अरबों को आगे बढ़ने से रोका।
  • नागभट्ट द्वितीय ने कन्‍नौज को अपनी राजधानी बनाया।
  • नागभट्ट द्वितीय ने बंगाल  के शासक धर्मपाल को पराजित कर अपने साम्राज्‍य का विस्‍तार किया।
  • इस वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली और प्रतापी राजा मिहिरभोज था।
  • इसकी राजधानी कन्‍नौज थी, इसने आदि वाराह की उपाधि धारण की थी।
  • मिहिरभोज ने पाल राज्‍य के एक बड़े भू-भाग पर अधिकार कर लिया था।
  • मिहिरभोज वैष्‍णव धर्म का अनुयायी था।
  •  अरब यात्री सुनेमान के अनुसार मिहिरभोज अरबों का शत्रु था।
  • महेन्‍द्रपाल के गुरू, राजशेखर थे, जो संस्‍कृत के प्रसिद्ध विद्वान थे।
  • राजशेखर काव्‍यमीमांसा, भुवनकोष्‍ज्ञ, हरविलास, कर्पूरमज्‍जरी, बाल रामायण तथा विद्भशालमज्जिका जैसे ग्रंथ के रचयिता थे।
  • महिपाल के शासनकाल में अलमसूदी नामक लेखक भारत की यात्रा पर आया था।
  • प्रतिहार वंश का अन्तिम शासक राज्‍यपाल था।
  • प्रतिहार वंश के शासकों ने मुस्लिम आक्रमणरियों को लगभग 300 वर्षों तक रोके रखा।

तोमर वंश :

  • तोमरों को 36 राजपूत वंशों में एक माना जाता है।
  • अनंगपाल तोमर ने तोमर वंश की स्‍थापना की तथा ग्‍यारहवीं सदी के मध्‍य में दिल्‍ली नगर की स्‍थापना की।
  • तोमरों की राजधानी ढि़ल्लिका (दिल्‍ली) थी वहाँ से वे हरियाण पर शासन करते थे।

चौहान वंश :

  • चौहान वंश की स्‍थापना सातवीं शताब्‍दी में वासुदेव ने किया।
  • इस वंश की प्रारम्भिक राजधानी अहिच्‍छत्र थी।
  • चौहान शासक अजयपाल ने अजमेर नगर की स्‍थापना की तथा उसे राजधानी बनाया।
  • अर्णोराज, विग्रहराज, विग्रहराज चतुर्थ, वीसलदेव, पृथ्‍वीराज तृतीय इस वंश के महत्‍पूर्ण शासक थे।
  • इस वंश का अन्तिम एवं प्रसिद्ध शासक सोमेश्‍वर का पुत्र प्रथ्‍वीराज तृतीय था।
  • पृथ्‍वीराज तृतीय इतिहास में पृथ्‍वीराज चौहान के नाम से प्रसिद्ध था।
  • पृथ्‍वीराज चौहान को रायपिथौरा भी कहा जाता है।
  • पृथ्‍वीराज चौहान को रायपिथौरा भी कहा जाता है।
  • पृथ्‍वीराज चौहान के राजकवि चन्‍दवरदाई ने प्रसिद्ध ग्रन्‍थ पृथ्‍वीराज रासों की रचना की।
  • पृथ्‍वीराज तृतीय ने 1191 ई० में तराइन में मोहम्‍मद गोरी को हराया।
  • 1192 ई० में तराइन के दूसरे युद्ध में मुहम्‍मद गोरी ने पृथ्‍वीराज तृतीय को हराकर दिल्‍ली तथा अजमेर पर अधिकार कर लिया।
  • इस वंश के शासक विग्रहराज-।V के शासन काल में चौहानों की शक्ति का महत्‍वपूर्ण विकास हुआ।
  • विग्रहराज-।V के राजकवि सोमदेव ने प्रसिद्ध नाटक ललित विग्रहराज की रचना की।

कलचुरी वंश :

  • कलचुरियों की राजधानी त्रिपुरी थी, उनका शासन-क्षेत्र जबलपुर के आस-पास था।
  • लगभग 845 ई० में कोकल्‍ल प्रथम ने कलचुरी वंश की स्‍थापना की।
  • कोकल्‍ल के बाद इस वंश में चार और राजा हुए- लक्ष्‍मण राज, गांगेयदेव, लक्ष्‍मीकर्ण और यशकर्ण।
  • गांगेयदेव इस वंश का प्रसिद्ध राजा था, उसने बाइस वर्षों (1019-41 इ्र०) तक राज्‍य किया।
  • राजशेखर ने इस काल में काब्‍यमीमांसा तथा विद्वसालंभजिका नाम ग्रन्‍थ की रचना की।
  • कालचुरी वंश का अन्तिम शासक विजय सिंह था।

सोलंकी वंश :

  • सोंलकी वंश का शासन गुजरात में मूलराज सोलंकी (942-95 ई०) स्‍थापित किया।
  • सोलंकियों को अन्हिलवाड़ा का चालुक्‍य भी कहा जाता है।
  • सोलंकी वंश का दूसरा प्रतापी राजा भीम प्रथम था।
  • भीम प्रथम के शासन काल में महमूद गजनी ने सोमनाथ मन्दिर को लूटा।
  • माउंट आबू में स्थित प्रसिद्ध दिलवाड़ा जैन मन्दिर का निर्माण भीलम प्रथम के सामंत बिमल शाह ने करवाया।
  • सिद्धराज साहित्‍य का भी बड़ा प्रेमी थी, उसके दरबार में प्रसिद्ध जैन विद्वान हेमचंद्रसूरी रहता था।
  • उस वंश का अन्तिम शासक भी द्वितीय था।
  • 1195 ई० में कुतुबुद्दीन ऐबक ने अन्हिलवाड़ा को लूटा तथा अधिकार कर लिया।

गहढ़वाल वंश :

  • गहढ़वाल वंश का संस्‍थापक चन्‍द्रदेव शहरवार था, उसने कन्‍नौज पर अधिकार कर इस वंश की नीवं डाली।
  • लक्ष्‍मीधर ने इस वंश के शासक गोविन्‍दचन्‍द्र के शासनकाल में कृत्‍यकल्‍पतरू नामक ग्रन्‍थ लिखा।
  • इस वंश का अन्तिम शासक जयचन्‍द्र था।
  • दिल्‍ली और अजमेर के शासक पृथ्‍वीराज चौहान से जयचंद के संबंध अच्‍छे नहीं थे क्‍योंकिवह उसकी पुत्री को ‘स्‍वयंवर’ से  उठाकर ले गया था।
  • 1194 ई० में चन्‍दावर के युद्ध में मुहम्‍मद गोरी ने जयचन्‍द को मारकार इस वंश के शासन का अन्‍त किया।

चन्‍देल वंश :

  • नवीं शताब्‍दी के प्रारम्‍भ में नन्‍नुक चन्‍देल ने बुंदेलखण्‍ड के दक्षिणी भाग में इस वंश के राज्‍य की नींव डाली।
  • नन्‍नुक का नाती जैशक्ति अथवा जैजी थी इसी केनाम पर उसके राज्‍य का नाम जैजाकभुक्ति  पड़ा, इसकी राजधानी खजुराहों थी।
  • यशोवर्मन इस वंश का प्रतापी राजा था, वह इस वंश का प्रथम स्‍वतन्‍त्र शासक था, उसने स्‍वयं को प्रतिहार साम्राज्य से स्‍वतन्‍त्र किया था।
  • यशोवर्मन ने खजुराहो में विष्‍णु के भव्‍य चतुर्भुज मन्दिर है।
  • इस वंश के शासक धंग ने विश्‍वनाथ, जिन्‍ननाथ तथा वैद्यनाथ मन्दिरों का निर्माण करवाया।
  • इस वंश के शासकगण्‍ड ने महमूद गजनी की अधीनता स्‍वीकार कर ली।
  • चन्‍देल शासक कीर्तिवर्मन ने कालुचरियों को हराया तथा कीर्तिसागर नामक एक जलाशय का निर्माण कराया।
  • कीर्तिवर्मन के शासन काल में कृष्‍ण मिश्र ने प्रबोध चन्‍द्रोदय नामक  ग्रन्‍थ लिखा।
  • चन्‍देल शासक परमर्दिदेव के दरबार में आल्‍हा-उदल नामक दो वीर सेनानायक भाई रहते थे।
  • परमर्दी (1163-1203)  इस वंश का अन्तिम शासक था।
  • 1203 ई० में कुतुबुद्दीन ऐबक ने परमर्दीको हरा कर चन्‍देल राज्‍य को दिल्‍ली सल्‍तनत में मिला लिया।

परमार वंश :

  • नौवीं शताब्‍दी के अन्‍त में प्रतिहार वंश के बाद मालवा में परमार वंश का उदय हुआ।
  • परमारोंकी प्रारम्भिक राजधानी उज्‍जैन थी, परन्‍तुआगे चलकर धारा (मध्‍य प्रदेश) राजधानी बना।
  • इस वंश का प्रथम स्‍वतन्‍त्र एवं शक्तिशाली शासक सीयक अथवा श्री हर्ष था।
  • इस वंश के द्वितीय शासक मुंज (972-97 ई०) ने चालुक्‍य शासक तैलप-।। को लगभग 6 बार परा‍जित किया।
  • मुंज के दरबार में दशरूपक के रचयिता धनंजय तथा नवसाहशांक के रचयिता पदम्गुप्‍त रहते थे।
  • इस वंश के राजाओं में भोज (1205-60 ई०) सबसे अधिक प्रसिद्ध हुआ है।
  • राजा भोज एक महान कवि था, उसने कविराज की उपाधि धारण की।
  • ‘भोज’ ने चिकित्‍सा, गणित एवं व्‍याकरण पर ग्रन्‍थ लिखे।
  • राजा भोज के महत्‍वपूर्ण ग्रन्‍थ- समरांगसूत्रधार, चारूचर्चा, सरस्‍वतीकंठाभरण, सिद्धान्‍त संग्रह, राजर्माण्‍ड, योगसूत्रावृत्ति, विधाविनोद, यूक्त्किल्‍पतरू, आयुर्वेद सर्वस्‍व, आदित्‍य प्रताप, सिद्धान्‍त।
  • भोज ने अनेक भारतीय राजाओं को हराया तथा भोजपुर (आधुनिक आरा-बिहार) शहर की स्‍थापना की।
  • भोज ने राजधानी धारा में एक सरस्‍वती मन्दिर की स्‍थापना की।
  • भोज ने चितौड़ के त्रिभुवन नारायण मन्दिर, केदारश्‍वर, रामेश्‍वर सोमनाथ तथा सुंडान मन्दिर का निर्माण करवाया।
  • परमार शासक उदयादित्‍य मिलसा में उदयपुर के प्रसिद्ध मन्दिर का निर्माण करवाया।
  • परमार वंश का अन्तिम राजा माल्‍हक देव था।
  • 1297 ई० में अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति ऐनुल्‍लमल्‍क ने मालवा पर विजय प्राप्‍त कर ली तथा अलाउद्दीन का मालवा पर अधिकार हो गया।

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