मौर्य साम्राज्य : Maurya Dynasty Notes In Hindi For UPSC & SSC
Mauryan Empire IAS Notes In Hindi : Hy Students, आज हम आपके लिए Maurya Dynasty के One Liner Notes हम आज आपके लिए Hindi में लेकर आये हैं | आप हमारी websites में Notes In Hindi Series में जाकर Hindi में History के सभी Topics को Cover कर सकते हैं | UPSC, SSC CGL, SSC CHSL, IAS की तैयारी में जुटे Students को Maurya Dynasty In Hindi जरुर देखना चाहिए |
Mauryan Empire UPSC In Hindi : मौर्य साम्राज्य (Maurya Empire)
- मौर्य साम्राज्य का संस्थापक ‘चन्द्रगुप्त मौर्य’ था।
- चन्द्रगुप्त का जन्म ई० पू० 345 में शाक्यों के पिप्पलिवन की मोरयि शाखा में हुआ था।
- यूनानी साहित्य में चन्द्रगुप्त मौर्य को सैंड्रोकोट्टस कहा गया है।
- चन्द्रगुप्त ई० पू० 322 में गद्दी पर बैठा।
- चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य पूरब में बंगाल से पश्चिम में ईरान तक उत्तर में अफगानिस्तान से दक्षिण में कर्नाटक तक था।
- विलियम जोन्स ने सेन्ड्रोकोट्टस की पहचान चन्द्रगुप्त मौर्य के रूप में की है।
- चन्द्रगुप्त मौर्य के रूप में की है।
- चन्द्रगुप्त के विषय में जस्टिन का कथन है कि उसने 6 लाख की सेना लेकर सम्पूर्ण भारत को रौंदा और अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया।
- चन्द्रगुप्त मौर्य ने 305 ई० पू० में सिकन्दर के सेनापति सेल्यूकस को पराजित किया।
मौर्य वंश के शासक 1.चन्द्रगुप्त मौर्य (ई० पू० 322-298)। 2.बिन्दुसार (ई०पू० 298-273) 3.अशोक (ई० पू० 269- 232)। 4.कुणाल। 5.बन्धु पालित । 6.इन्द्रपालित । 7.दशेल । 8.दशरथ। 9.सम्प्रति। 10.शालिशुक। 11.देवधर्मन। 12.बृहद्रथ। |
Note : अन्तिम मौर्य सम्राट ‘बृहद्रथ’ की हत्या उसके ब्राह्मण मन्त्री पुश्यमित्र शुंग ने कर दी। |
- चन्द्रगुप्त एवं सेल्यूकस के बीच हुए युद्ध का विवरण एप्पियानस नामक यूनानी व्यक्ति ने किया है।
- सेल्यूकस ने अपनी बेटी कारनेलिया की शादी चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ कर दी तथा काबुल, गन्धार, मकरान और हेरात प्रदेश चन्द्रगुप्त को दहेज के रूप में प्रदान किया।
- प्लूटार्क के अनुसार चन्द्रगुप्त ने सेल्युकस को 500 हाथी उपहार में दिया।
- सेल्युकस ने मेगास्थनीज को दूत बनाकर चन्द्रगुप्त के दरबार में भेजा।
- मेगास्थनीज काफी दिनों तक पाटलिपुत्र में रहा तथा उसने चन्द्रगुप्त एवं पाटलिपुत्र के बारे में अपनी पुस्तक इंडिका (Indica) में लिखा।
- चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रधानमंत्री चाणक्य (अथवा, विष्णुगुप्त, या कौटिल्यऋ) था।
- चन्द्रगुप्त ने जैन धर्म स्वीकार कर लिया तथा आचार्य भद्रबाहु से जैन धर्म की दीक्षा ली।
- चन्द्रगुप्त मौर्य ने दक्षिण भारत में जैन धर्म का प्रचार किया।
- 300 ई० में कर्नाटक के श्रवणवेलगोला में अनशन व्रत करके चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने शरीर का त्याग कर दिया।
- चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के बाद उसका पुत्र बिन्दुसार मगध की गद्दी पर ई० पू० 300 में बैठा।
- यूनानी लेखों में बिन्दुसार को अमित्रोकेट्स कहा गया है, जिसका संस्कृत रूपान्तरण अमित्रघात हेाता है।
- बिन्दुसार आजीवक सम्प्रदाय की अनुयायी था।
- वायुपुराण में बिन्दुसार के लिए भद्रसार नामक शब्द का प्रयोग किया गया है।
- चाणक्य ने बिन्दुसार की 16 नगरों के सामंतों एवं राजाओं का नाश करने के लिए पूर्वी एवं पश्चिमी समुद्रों के बीच स्थित प्रदेश को जीतने में सहायता की।
- बौद्ध विद्वान तारानाथ के अनुसार बिन्दुसार 16 राज्योंका विजेता था।
- सीरिया के एण्टियोकस नाम राजा से ‘बिन्दुसार’ने मदिरा, सूखे अंजीर और दार्शनिक भेजने की अपील की थी।
- चाणक्य की मृत्यु के बाद राधागुप्त बिन्दुसार का प्रधानमंत्री बना।
- एंटियोकस प्रथम ने अपने राजदूत डायमेकस को बिन्दुसार के दरबार में मेगास्थनीज के स्थान पर भेजा था।
- टॉलमी द्वितीय फिलाडेल्फस ने डायनिकस को बिन्दुसार के दरबार में भेजा था।
- बिन्दुसार के शासनकाल में तक्षशिला में विद्रोह हुआ, उसका पुत्र सुसीम विद्रोह को दबाने में असफल रहा।
- सुसीम के असफल रहने के पश्चात् उज्जैन के तत्कालीन सूबेदार अशोक ने तक्षशिला के विद्रोह को सफलतापूर्वक दबा दिया।
- बिन्दुसार की मृत्यु के बाद ई० पू० 269 में अशोक मगध की गद्दी पर बैठा।
- राजगद्दी पर बैठने के समय अशोक अवन्ति का राज्यपाल था।
- पुराणों में अशोक को अशोकवर्धन कहा गया है।
- अशोक ने देवानामप्रिय तथा प्रियदर्शी जैसी उपाधियाँ धारण की, उसकी माता की नाम सुभद्रांगी था।
- अशोक ने अपने राज्याभिषेक के आठवें वर्ष लगभग 261 ई० पू० में कलिंग पर आक्रमण किया और कलिंग की राजधानी तोसाली पर अधिकार कर लिया।
- कलिंग युद्ध में 2.5 लाख व्यक्ति मारे गये एवं इतने ही घायल हुए।
- कलिंग युद्ध ने अशोक का ह्रदय परिवर्तन कर दिया तथा चौथे शिलालेख के अनुसार भेरीघोष के स्थान पर उसने धम्मघोष अपनानेकी घोषणा की।
- अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया एवं उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षु से बौद्ध धर्म की दीक्षा ली।
- अशोक ने आजीवकों को रहने हेतु बरबार की पहाडियों में चार गुफाओंका निर्माण करवाया, जिनका नाम कर्ज, चौपार, सुदामा तथा विश्व झोंपड़ी था।
- अशोक ने बौद्धधर्म के प्रचार के लिए अपने पुत्र महेन्द्र एवं पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा।
- अशोक ने अपने जीवन में दो आक्रमण किए, पहला आक्रमण कश्मीर पर किया।
- कश्मीर के ऐतिहासकि ग्रन्थ राजतरंगिणी में अशोक को मौर्य देश का प्रथम सम्राट बताया गया है।
- अशोक की तुलना डेविड एवं सोलमान (इस्त्रायल) तथा मार्कस ओरलियस एवं शार्लमा (रोम) जैसे विश्व के महानतम सम्राटों से की जाती है।
- अशोक ने यवन शासकों एंटियोकस-ll (सीरिया), टॉलमी-ll (मिस्त्र) , एंटिगोनस गोनाटस (मकदूनिया), मरास (साइरिन) एवं एलेक्जेंडर से मित्रतापूर्ण संबंध कायम कियेएवं उनके दरबार में अपने दूत भेजे।
- चोल, पांड्य, सतियपुत्र, केरलपुत्र एवं ताम्रपर्णि आदि दक्षिण-भारतीय राज्यों में अशोक नेधर्म प्रचार के लिए दूत भेजा।
- अशोक ने बौद्ध धर्म को राजधर्म, ब्राह्मी लिपि को राजकीय लिपि घोषित किया था।
- भब्रू शिलाललेख से स्पष्ट होता है अशोक बुद्ध, धम्म एवं संघ में विश्वास रखता था।
- अशोक ने अपनी प्रजा के नैतिक उत्थान के लिए आचार-संहिता का प्रतिपादन किया, इसे ही अभिलेखों में धम्म कहा गया है।
- धम्म की परिभाषा राहुलोवाद सूक्त से ली गई है।
- अशोक के तीसरे शिलालेख के अनुसार प्राचीन काल में विहार यात्रा के नाम से प्रचलित यात्रा को धम्म यात्रा में बदल दिया।
- अशोक ने अपने राज्याभिषेक के 12वें वर्ष में धर्म प्रचार के लिए राजुका, प्रदेशका एवं युक्त जैसे पदाधिकारियों को लगाया।
Mauryan Empire IAS Notes In Hindi
क्रम संख्या | अशोक द्वारा भेजे गये बौद्ध मिशन धर्म प्रचारक | प्रचार का क्षेत्र |
1. | महेन्द्र/संघमित्रा | श्रीलंका |
2. | धर्मरक्षित | पश्चिमी भारत |
3. | माजझंतिक | कश्मीर-गंधार |
4. | महादेव | मैसूर |
5. | रक्षित | उत्तरी किनार |
6. | सोन/उत्तरा | सुवर्ण भूमि |
7. | महाधर्मरक्षित | महाराष्ट्र |
अशोक के 14 शिलालेखोंके विषय
· भारतीय इतिहास में ‘अशोक’पहला शासक था जिसके हस्तलिखित एवं मौलिक अभिलेख प्राप्त हुए हैं। इनमें अशोक के 14 शिलालेखों (Rock Edicts) की एक माला सहबाज गढ़ी मन सेहरा, कलसी, गिरनार, सोपारा, धौली, जोगदा, येरगुड़ी से प्राप्त हुए हैं। इनसे तत्कालीन मौर्य साम्राज्य (Maurya Empire) पर वृहद् प्रकाश पड़ता है- |
1. शिलालेख -: पशुबलि की निन्दा।
2. शिलालेख :- पशु एवं मनुष्य दोनों के लिए चिकित्सा–व्यवस्था का प्रबन्ध वर्णित है। 3. शिलालेख :- अशोक द्वारा राजकीय अधिकारियों को प्रत्ये वर्ष पर राज्यक्षेत्र का दौरा करने का आदेश तथा अशोक द्वारा अल्प–व्यय एवं बचत की हिदायत दिये जाने तथा कुछ धार्मिक नियमों का उल्लेख। 4. शिलालेख :- धर्म से सम्बन्धित शेष विषयों का उल्लेख इससे प्राप्त होता है। 5. शिलालेख :- अशोक द्वारा ‘धम्महामात्रों ’ की नियुक्ति का उल्लेख। 6. शिलालेखा :- आत्म–नियंत्रण की हिदायत, तथा अशोक द्वाराहर पल प्रजा के कल्याण की कामना । 7. – 8. शिलालेख :- इनमें अशोक की धम्म-यात्राओं का विवरण है। 9. शिलालेख :- सच्ची भेंट व शिष्टाचार का उल्लेख। 10. शिलालेख :- अशोक ने आदेश दिया कि राजा एवं प्रत्ये उच्चाधिकारी प्रजा के हित में सोचें। 11. शिलालेख :- धर्म के वरदान को सर्वोत्कृष्ट घोषित किया गया है। 12. शिलालेख :- सभी प्रकार के विचारों का आदर करनेकी बात कही गई है। 13. शिलालेख :- कलिंग युद्ध एवं अशोक के ह्रदय परिवर्तन का उल्लेख । 14. शिलालेख :- इसमें अशोक ने प्रजा को धार्मिक जीवन जीने के लिए प्रेरित किया। |
- ‘8वें’ शिलालेख के अनुसार शासन के 13वें वर्ष में अशोक ने धम्म महामात्रोंकी नियुक्ति की।
- मौर्य प्रशासन के विषय में कौटिल्य के अर्थशास्त्र एवं मेगास्थनीज की इंडिका से महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।
- मौर्य प्रशासन एक निंरकुश राजतंत्र (Autocratic Monarchy) था।
- मौर्य प्रशासन में सैन्य, वित्त, रक्षा , न्याय से संबंधित तमाम अंतिम शक्तियाँ राजाके हाथों में केन्द्रित था।
- राजा की सहायता के लिए एक 16 से 20 सदस्यीय मंत्रिपरिषद थी, जिसका परामर्श मानने को राजा बाध्य नही था।
- कौटिल्य के अर्थशास्त्र में शीर्षस्थ मंत्रियों का उल्लेख तीर्थ (महामात्र अथवा अमात्य) के रूप में किया गया है।
- अर्थशास्त्र में कुल मिलाकर 18 तीर्थों का वर्णन किया गया है।
- इनमें महामन्त्री एवं पुरोहित अति महत्वपूर्ण थे, इन्हींकी सलाह पर राजा अन्य अमात्यों की नियुक्ति करता था।
- पुरोहित, महामन्त्री एवं सेनापति को सम्भवत: 48000 पण एवं समाहर्त्ता तथा सन्निधाता को 24000 पण तथा शेष सभी उच्चाधिकारियों को 12000 वार्षिक वेतन मिलते थे।
- युक्त (खोई हुई संपत्ति के प्राप्त होने पर उसकी सुरक्षा करने वाला), प्रतिवैदिक (सम्राट को प्रतिदिन की सूचना देने वाला), ब्रजभूमिक (गौशाला का निरीक्षण करने वाला पदाधिकारी) एग्रोनोमोई (सड़कों का निरीक्षण करने वाला पदाधिकारी ) आदि मौर्यकाल के कुछ प्रमुख पदाधिकारी थे।
अर्थशास्त्र में वर्णित 18 तीर्थ
- महामन्त्री – मुख्यमंत्री
- पुरोहित – राजा का प्रमुख सलाहकार
- सेनापति – सशस्त्र सेना का प्रधान
- युवराज – राजा का ज्येष्ठ पुत्र
- दौवारिक – द्वारापाल
- दंडपाल – पुलिस का प्रधान अधिकारी
- समाहर्त्ता – आय संग्रहकर्त्ता
- प्रदेष्ट्रा- कमिश्नर
- पौर – नगर कोतवाल
- नायर- नगराध्यक्ष
- कामांतिक – खनन एवं कारखाने का अध्यक्ष
- सन्निधाता- राजकोष का अध्यक्ष
- व्यावहारिक –मुख्य न्यायाधीश
- मंत्रिमण्डलाध्यक्ष- मंत्रिमण्डल का अध्यक्ष
- अन्तपाल – सीमावर्ती दुर्गों का रक्षक
- दुर्गपाल –देश के अंदर दुर्गों का रक्षक
- अन्तर्वेदकि- अन्त:पुर का रक्षाधिकारी
- प्रशास्त – कारागार अधिकारी, राजकीय आदेशों को लिपिबद्ध कराने वाला अधिकारी तथा राजकीय कागजातोंको सुरक्षित रखनेवाला प्रमुख अधिकारी।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में अमात्यों के नीचे कार्यरत 27 अधीक्षकों (Suprintendents) का है, जिनमें कुछ प्रमुख निम्न है-
- मुद्राध्यक्ष- राजकीय मुद्रा का नियंत्रक।
- कोषाध्यक्ष- खजाने का प्रधान।
- अक्षपटलाध्यक्ष – लेखा विभाग का प्रधान।
- अकराध्यक्ष – खानों का प्रधान।
- नगराध्यक्ष – नगर-शासन का प्रबंधक।
- लक्ष्णाध्यक्ष- मुद्रा-व्यवस्था का प्रधान।
- पण्याध्यक्ष – व्यापार विभाग का प्रमुख।
- लोहाध्यक्ष – धातु विभाग का प्रमुख।
- पौटवाध्यक्ष – माप-तौल का प्रमुख।
- सीताध्यक्ष – राजकीय जमीन का प्रमुख।
- चन्द्रगुप्त मौर्य ने कानून- व्यवस्था बनाये रखने हेतु पुलिस का गठन किया तथा इसे दो भागों में – साधरण पुलिस एवं गुप्तचर (गूढ़ पुरूष) में बाँटा।
- प्रकट पुलिस के सिपाहियों को रक्षिन कहा जाता था।
- मौर्य प्रशासनर में गुप्तचर विभाग महामात्य सर्प नामक अमात्य के अधीन था।
- गुप्तचर सेवा को भी दो भागों में बाँटा गया था- संस्थान तथा संचारण।
- संस्थान वर्ग के गुप्तचर एक स्थान पर टिककर वहाँ के गतिविधियों की सूचना राजा को देते थे।
- संचारण वर्ग के गुप्तचर एक स्थान से दूसरे स्थान तक भ्रमण करके विभिन्न स्थानों की सूचना राजा को देते थे।
- प्लिनी के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना में 6 लाख पैदल सैनिक, 30 हजार घुड़सवार, 9 हजार हाथी तथा 8000 रथ थे।
- इंडिका के अनुसार सम्पूर्ण सेना के प्रबन्धन हेतु एक 30 सदस्यीय समिति होती थी।
- सेना का प्रबन्ध 6 भागों में विभक्त था तथा प्रत्येक विभाग की समिति में अध्यक्ष सहित 5 सदस्य होते थे-
- प्रथम समिति – ये जल सेना का प्रबन्ध करती थी।
- द्वितीय समिति – सेना को हर प्रकार की सामग्री तथा रसद भेजने का प्रबन्ध करती थी।
- तृतीय समिति – पैदल सेना का प्रबन्ध करती थी।
- चतुर्थ समिति – अश्वरोहियों का प्रबन्ध देखती थी।
- पाँचवीं समिति – हाथियों की सेना का प्रबन्ध देखती थी।
- छठी समिति – रथ सेना का प्रबन्ध देखती थी।
- सेना के साथ एक चिकित्सा– विभाग होता था जो घायल सैनिकों का इलाज करता था।
- अशोक के समय जनपदीय न्यायालयके न्यायाधीश को राजुका कहा जाता था।
- मौर्य काल में प्रान्तों को चक्र कहा जाता था।
- प्रांतों का प्रशासन राज्य परिवार के ही किसी व्यक्ति द्वारा होता था जिन्हें अशोक के अभिलेखों में कुमार या आर्यपुत्र कहा गया है।
- प्रान्तों में कई मण्डल होते थे।
- मण्डल जिलों में विभक्त थे, जिन्हें आहार या विषय कहा जाता था तथा ये विषयपति के अधीन होते थे।
- जिले, अनुमण्डलों में विभाजित थे, जिसका शासन स्थानिक के अधीन होते था, अनुमण्डल गाँवों को मिलाकर गठित होते थे।
- प्रखण्ड का पदाधिकारी गोप होता था, जो स्थानिक के नीचे कार्य करता था। स्थानिक समाहर्ता के नीचेकार्य करता था।
- ग्राम प्रशासन की सबसे छोटी इकाई थी। ग्राम का शासक ग्रामिक (मुखिय) कहलाता था।
- मेगास्थनीज ने अपनी पुस्तक इंडिका में नगर-शासन व्यवस्था विशेषकर पाटलिपुत्र नगर की प्रशासन का विवरण प्रस्तुत किया है।
मौर्यकालीन न्यायालय
- राज्य का सर्वोच्च न्यायाधीश राजा होता था। उसका न्यायालय उच्चतम न्यायालय होता था।
- न्यायालय मुख्यम: दो भागों में विभक्त थे-
- धर्मस्थेय- इस न्यायालय में न्याय धर्मशास्त्र में दक्ष धर्मस्थेय, व्यावहारिक एवं अमात्य मिलकर करते थे। इसका रूप एक प्रकार से दीवानी अदालतों जैसा था।
- कंटक शोधन – इन न्यायालयों में तीन प्रदेष्टि एवं तीन अमात्य मिलकर न्याय करते थे। इनके न्याय का विषय राज्य एवं व्यक्ति के बीच का विवाद होता था। इनका रूप एक तरह से फौजदारी अदालतों जैसा था।
नगर प्रशासन व्यवस्था
· इसके अनुसार नगर शासन का प्रबन्धन 30 सदस्यों वाला एक मण्डल करता था तथा यह मण्डल 6समितियों में विभाजित था और प्रत्ये समिति में पाँच सदस्य होते थे- 1. प्रथम समिति – पहली समिति उद्योग एवं शिल्पों का निरीक्षण करती थी। 2. द्वितीय समिति – यह समिति विदेशियों की देख-रेख का कार्य करती थी। 3. तृतीय समिति – यह समिति जन्म-मरण का लेखा-जोखा , कराधान एवं जनसंख्या वृद्धि एवं कमी मापने के लिए जन्म-मरण का रजिस्ट्रेशन करवाना, इस समिति का प्रमुख कार्य था। 4. चतुर्थ समिति – व्यापार एवं वाणिज्य की देखभाल करना, इस समिति का प्रमुख कार्य था। 5. पंचम समिति – निर्मित वस्तुओं के विक्रय का निरीक्षण करना , इस समिति का प्रमुख कार्य था। |
- मेगास्थनीज के अनुसार मौर्यकालीन समाज 7 जातियों दार्शनिक, किसान, सैनिक, ग्वाले, शिल्पी, दंडनायक और पार्षद में विभक्त था।
- शिल्पियों को समाज में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था।
- मौर्यकाल में तक्षशिला शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण केन्द्र थी।
- तकनीकी शिक्षा आमतौर पर श्रेणियों (गिल्डों) के माध्यम से दी जाती थी।
- स्वतन्त्र रूप से वेश्यावृति करने वाली स्त्रियों को रूपजीवा तथा महिला मल्याण अधिकारी को इत्फेक महामत कहा जाता था।
- कोटिल्य ने 9 प्रकार के दासों का जिक्र किया है।
- मौर्यकालीन अर्थव्यवस्था मुख्यत: कृषि प्रधान थी।
- कृषि में सिंचाई की सुविधा के लिए चन्द्रगुप्त के निर्देश पर पुष्यगुप्त के द्वारा सौराष्ट में सुदर्शन झील पर सेतुबंध का निर्माण हुआ।
- मौर्यकाल में समस्त भूमि राजा की थी, सरकारी भूमि को सीता कहा जाता था।
- मौर्यकाल में वनो को दो वर्गों में बाँटा गया था। जिस वन में हाथी रहते थे उसे हस्तिवन तथा खनिज पदार्थों की प्रचुरता वाले वनों को द्रव्यवन कहा जाता था।
- कृषि पशुपालनर तथा उद्योग व्यापार पर आधारित आर्थिक जीवन को वार्ता कहा गया।
- इस काल में रेशम चीन से आयाता होता था।
- इस काल में रेशमी कपड़े का मुख्य केन्द्र काशी और पुण्ड्र तथा मलमल का वंग था।
- उद्योग व्यापार के संगठन या संस्थाओं को श्रेणी या गिल्ड कहा जाता था।
- मौर्यकालीन स्वर्ण सिक्कों को निष्क या सुवर्ण कहा जाता था।
- प्रत्येक सिक्के की बनाई 1 ककिली ली जाती थी।
- सिक्के बनवाने में 13.5% ब्याज रूपिका एवं परीक्षण के रूप में देना पड़ता था।
- चाँदी के सिक्कों को कार्षापण या, धारण या पण् या, रूप्य कहा जाता था।
- ताँबे के सिक्कों को ताम्ररूप या, भाषक या ककिणी कहा जाता था।
- मौर्यकाल में नि:शुल्क श्रम एवं बेगार किये जाने का उल्लेख है, इसे विष्टि कहा जाता तथा।
- बलि एक प्रकार का धार्मिक कर था कि भू-राजस्व में राजा के हिस्से को भाग कहा जाता था।
- भू-राजस्व की दर कुल उपज का 1/6 हिस्से से 1/8 हिस्से तक थी।
- हिरण्य एक प्रकार का कर था जो अनाज के रूप में न लेकर नकद के रूप में देना पड़ता था।
- शराब बेचने वाले को शौण्डिक कहा जाता था।
- मौर्यकाल में पाटलिपुत्र, तक्षशिला, उज्जैन, तोशाली, कौशांबी, वाराणसी आदि प्रमुख व्यापारिक केन्द्र थे।
- भारत के समुद्र तटों पर अनेक बंदरगाह थे जहाँ से लंका, वर्मा, मिस्त्र, सीरिया, सुमात्रा, जावा, फारस, यूनान तथा रोम से विदेशी व्यापार होते थे।
- मौर्यकाल में दो प्रधान स्थल मार्ग थे-पाटलिपुत्र-वाराणसी-उत्तरापथ मार्ग तथा पाटलिपुत्र से वाराणसी, उज्जैन होते हुए पश्चिमी तट के बंदरगाहों तक दूसरा प्रमुख मार्ग जाता था।
- चन्द्रगुप्त का राजा-प्रासाद सम्भवत: वर्तमान पटना के निकट कुम्हरार गाँव के समीप था।
- डाँ० स्पूनर ने बुलंदीबाग एवं कुम्हरार (पटना स्थित) लकड़ी के विशाल भवन के अवशेषों का पता लगाया, इस भवन की लम्बाई 140 फुट और चौड़ाई 120 फुट है।
- स्तम्भों में सर्वाधिक स्तूपों (लगभग 84,000) का निर्माण करवाया इनमें साँची (मध्यप्रदेश) तथा भरहुत का स्तूप प्रमुख है।
- गया के निकट बराबर की पहाडि़यों में अशोक ने अपने राज्याभिषेक के 12वें वर्ष में सुदामा गुहा आजीवक भिक्षुओं को दान में दी।
- अशोक के पुत्र दशरथ ने नागार्जुनी पहाडि़यों में आजीविकों को 3 गुफाऍं प्रदान की, इसमें से एक प्रसिद्ध गुफा गोपी गुफा है।
- मौर्य शासन 137 वर्षों तक रहा, इसका अन्तिम शासक बृहद्रथ था, जिसकी हत्या उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने 185 ई० पू० में कर दी एवं मगध पर ‘शु्ंगवंश’ की नींव डाली।