दोस्तों , आज हम Notes In Hindi Series में आपके लिए लेकर आये हैं सिन्धु सभ्यता से सम्बन्धित सामान्य ज्ञान! Jain Dharma History | Niyam | Updesh | Siddhant In Hindi से सम्बन्धित बहुत से Questions Competitive Exams में पूछे जाते हैं , यह एक बहुत ही विशेष Part आता है हमारे Gs का | तो आज हम पढेंगे Jain Dharma History,Niyam,Updesh,Siddhant In Hindi,Jain Dharm Ke baare Me Puri jankari के बारे में !
Jain Dharma History In Hindi
- ‘जैन धर्म’ का उदय वैदिक काल में ही हुआ था, तथा यह ‘बौद्ध धर्म’ से पुराना है।
- जैन परम्परा में धर्मगुरूओं को तीर्थंकर कहा जाता है इनकी संख्या 24 है।
- ऋषभदेव इस परम्परा के पहले तीर्थंकर हुए।
- ऋषभदेव, पार्श्वनाथ (23वें तीर्थंकर) तथा मर्द्धमान महावीर (24वें तीर्थंकर) को छोड़कर शेष्ज्ञ सभी तीर्थंकरों की ऐतिहासिकता संदेह के घेरे में है।
ई० पू० छठी शताब्दी में भारत में उदित प्रमुख धार्मिक संप्रदाय-
संप्रदाय | संस्थापक |
1. जैन धर्म | वर्द्धमान महावीर (वास्तविक संस्थापक) |
2. आजीवक संप्रदाय | मक्खलि गोशाल |
3. भौतिकवाद | पकुध कच्चायन |
4. घोर अक्रियावादी- | पूरन कश्यप |
5. रूद्र संप्रदाय (विशिष्टद्वैत) | रामानुज |
6. परमार्थ संप्रदाय | रामदास |
7. बरकरी सम्प्रदाय | नामदेव |
8. बौद्ध धर्म
|
गौतम बुद्ध |
9. अनिश्चयवाद | संजय वेट्ठलिपुत्र |
10. यदृच्छवाद | अजाति केशकम्बलीन |
11. द्वैताछेत (सनक संप्रदाय ) | निम्बार्क |
12. रामभक्त संप्रदाय | रामानन्द |
13. श्री वैष्णव संपद्राय | रामानुज |
- जैनों के 23वें तीर्थंकर पाश्र्वनाथ का जन्म ई०पू० 850 इ्र० में वाराणसी में हुआ था।
- पार्श्वनाथ के पिता अश्वसेन ‘काशी’ के इक्ष्वाकु वंश के राजाथे।
- वे 30 वर्षों की आयु में वैराग्य उत्पन्न होने के कारण संन्यासी हो गये।
- 83 दिनों तक सम्मेत पर्वत (पारसनाथ पहाड़ी झारखण्ड) पर कठिन तप करने के पश्चात् 84वें दिन उन्हें ‘कैवल्य (ज्ञान)’ की प्राप्ति हुई।
- जैन अनुश्रुतियों के अनुसार पार्श्वनाथ ने 70 वर्ष तक धर्मप्रचार किया।
- पार्श्वनाथ के अनुयायिों को निर्ग्रंथ कहा जाता था तथ ये चार गणों (संघों) में संगठित थे।
- पार्श्वनाथ ने सत्य (सदा सच बोलना) अहिन्सा (किसी प्राकर की हिन्सा न करना), अस्तेय (चोरी न करना) तथा अपरिग्रह (धन संचय) नर करने का उपेदश दिया है।
तीनों प्रमुख तीर्थंकरोंने प्रतीक चिन्ह्र 1. ऋषभदेव – साँढ़। 2. पार्श्वनाथ – शंख। 3. वर्द्धमान महावीर – शेर। |
- कल्पसूत्र (भद्रबाहू) के अनुसार पार्श्वनाथ का निधन सम्मेत पर्वत (पारसनाथ) पर हुआ था।
- पारसनाथ (झारखण्ड) पहाड़ी आज भी जैनियों का एक पवित्र स्थल है।
- महावीर स्वामी जैन धर्म के ‘24वें’ एवं अन्तिम तीर्थंकर थे।
- ई०पू० छठी शताब्दी में ‘वज्जि संघ’ में 8 गणराज्य सम्मिलत थे, जिसमें एक राज्य कुण्डग्राम था।
- ‘कुण्डग्राम’ में उक्त काल में ज्ञातृक क्षत्रियों का राज्य था, जिसके प्रमुख राजा सिद्धार्थ थे।
- राजा ‘सिद्धार्थ’ का विवाह लिच्छवि गणराज्य के प्रमुख चेटक की बहन त्रिशला से हुआ।
- महावीर के बचपन का नाम वर्द्धमान था, उसका जन्म 540 ई०पू० में हुआ।
- बड़े होने पर यशोदा से महावीर का विवाह हुआ।
- ‘यशोदा’ से अन्नोज्जा प्रियदर्शिनी का जन्म हुआ।
- वर्द्धमान ने 30 वर्ष की उम्र में अपने भाई राजा नंदिवर्द्धन से आज्ञा लेकर गृह-त्याग दिया।
- प्रसिद्ध जैन-ग्रन्थों कल्पसूत्र एवं अचरांगसूत्र से ज्ञात होता , कि वर्द्धमान महावीर ने 12 वर्षों तक ऋजुपालिका नदी के तट पर जम्बीग्राम के समीप साल वृक्ष के नीचे कठोर तपस्या की।
- 12 वर्षोंके कठोर तप के पश्चात् 42 वर्ष की उम्र में महावीर को कैवल्य (सर्वोच्च ज्ञान) की प्राप्ति हुआ।
- ‘कैवल्यֹ’ की प्राप्ति कर लेने के कारण उन्हें केवलिन कहा गया।
- अपनी समस्त इंद्रियों को जीत लेने के कारण उन्हें जिन कहा गया।
- तप-काल में अपरिमित पराक्रम दिखाने के कारण उन्हें महावीर कहा गया।
- महावीर से पूर्व संगठित ‘निर्ग्रंथ’संप्रदायजैन-संप्रदाय कहलाया तथा इनका धर्म जैन धर्म के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
- 468 ई०पू० में 72 वर्ष की अवस्था में ‘महावीर’ की मृत्यु पावा (पावापुरी ) के मल्ल राजा सृस्तिपाल के राजप्रसाद में हुआ।
- महावीर ने अपने उपदेश प्राकृत (अर्द्धमागधी) भाषा में दिये।
- महावीर के बसे पहले शिष्य उनके दामाद जमाली बने।
- महावीर की प्रथम महिला शिष्य राजा दधिवाहन की पुत्री चम्पा थी।
- जैन धर्म के अनुयायी कुछ प्रमुख शासक थे- उदयन, चंद्रगुप्त मौर्य, कलिंगराज खारवेल अमोघवर्ष(राष्ट्रकूट शासक) चंदेल शासक।
- महावीर ने अपने शिष्यों को 11 गणधर में बाँटा।
- महावीर का 11वाँ शिष्य आर्य सुधरमन जैन संघ का प्रमुख बना।
- जैन धर्म में अत्यधिक तृष्णा-बंधन से मुक्ति को निर्वाण कहा गया है।
- निर्वाण की प्राप्ति के लिए त्रिरत्न का अनुशीलन अवश्य है।
- सम्यक् दर्शन (दुख-सुख के प्रति समभाव) जैन धर्म के ‘त्रिरत्न’ हैं।
- त्रिरत्न के अनुशीलन में निम्न पंचमहाव्रत का पालन आवश्यक माना गया है- अंहिसा, सत्य वचन, अस्तेय, अपरिग्रह एवं ब्रह्मचर्य ।
- अस्तेय (Non-stealing) का अर्थ चोरी नहीं करना होता है।
- ब्रह्मचर्य (Brahamcharya) किसी नारी से वार्तालाप, उसे देखना तथा उसके संसर्ग को निषेधित करता है।
- अपरिग्रह (Non-attachment) के अंतर्गत किसी भी प्रकार से संग्रह करने की प्रवृत्ति वर्जित है।
- पंचमहाव्रत में अहिंसा, सत्य वचन, अस्तेय एवं अपरिग्रह पार्श्वनाथ द्वारा प्रतिपादित किये गये थे।
- पंचमहावृत में ब्रह्मचर्य व्रत महावीर स्वामी द्वारा जोड़ा गया।
- ‘प्रथम पैन संगीति’ का अयोजन ई०पू० 322-298 के बीच पाटलिपुत्र में हुआ।
- प्रथम पैन संगीति को मौर्य सम्राट ‘चंद्रगुप्त मौर्य’ ने संरक्षण प्रदान किया।
- प्रथम जैन संगीति में जैन साहित्य के 12 अंगों का प्रणयन किया गया।
- द्वितीय जैन संगीति का आयोजन 512 ई० में वल्लभी ( गुजरात ) में हुआ।
- द्वितीय जैन संगीति की अध्यक्षता देवर्धिक्षमाश्रमण द्वाराकी गई।
- द्वितीय जैन संगीति के दौरान जैन धर्म ग्रन्थों को अन्तिम रूप से संकलित एवं लिपिबद्ध किया गया।
- ‘महावीर स्वामी’की मृत्यु के 200 वर्षों के बाद ‘मगद’ में एक भीषण अकाल पड़ा।
- उपर्युक्त काल में भद्रबाहु जैनियों का प्रमुख तथा चन्द्रगुप्त मौर्य मगध का सम्राट था।
- अकाल की विभीषिका से बचने के लिए ‘मौर्य सम्राट’ एवं भद्रबाहु अपने अनुयायिों के साथ दक्षिण भारत के कर्नाटक चले गये।
- मगध में रह गयें जैनियों की जिम्मेदारी स्थूलभद्र को सौंपी गई।
- भद्रबाहु के अनुयायी जब दक्षिण से लौटे तो जैन संप्रदाय दो खेमों में बंट गया-
- भद्रबाह के खेमे ने महावीर की शिक्षा के अनुसार ‘ पूर्ण नग्नता’ को स्वीकार किया।
- स्थलबाहु के खेमे ने महावीर की शिक्षा के अनुसार ‘श्वेत वस्त्र’ धारण करने को समर्थन दिया।
- उपरोक्त कारण से स्थलबाहु के समर्थक श्वेतांबर एवं भद्रबाहु के समर्थक दिगंबर कहलाये।
- जैन धर्म ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करता।
- जैन धर्मके अनुसार प्रत्येक जीव में दो तत्व सदैव विद्यमान रहते हैं-एक आत्मा (Soul) तथा दूसरा इसे घेरनेवाले भोतिक तत्व।
- जैन धर्म के आध्यात्मिक विचार सांख्य दर्शन से प्रेरित हैं।
- मोर्य काल के पश्चात मथुरा जैन धर्म का एक प्रसिद्ध केंद्र बना।
- मथुरा कला जैन धर्म ने खजुराहों में जैन मन्दिरों का निर्माण कराया।
- मैसूर के ‘गंगवंश’ के मन्त्री चामुंड ने कर्नाटक के श्रवणवेलगोला में गोमतेश्वर की मूर्मि स्थापित की।
- नयचन्द्र सभी जैन तीर्थंकरों में संस्कृत भाषा का सबसे बड़ा द्विान था।
- प्रसिद्ध जैनग्रन्थ कल्पसूत्र (रचनाकार-भद्रबाहु) में जैन तीर्थंकरों की जीवनी संग्रहित है।
- जैनियों का प्रसिद्ध तीर्थस्थल जल-मन्दिर बिहार राज्य के पावापुरी में स्थित है।
- जैन धर्म के बसे प्रसिद्ध श्रुतंग की भाषा मगधी है।
- तमिल साहित्य की प्रसिद्ध कविता जीवक चिंतामणि जैनियों की देन है।
- तिरूवल्लर का कुण्डल तमिल-साहित्य की एक प्रसिद्ध रचना है, इसका रचयिता भी एक जैनी था।
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Jain Dharm ki Pabitra pustak kon sa hai???