गुप्‍त काल (Gupta Period) : चन्‍द्रगुप्‍त, घटोत्‍कच, समुद्रगुप्‍त, स्‍वर्ण-युग,गुप्‍तकालीन प्रसिद्ध मन्दिर,अजंता चित्रकारी

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दोस्तों , आज हम Notes In Hindi Series में आपके लिए लेकर आये हैं हर्षवर्द्धन से सम्बन्धित सामान्य ज्ञान ! Harshvardhan बहुत से Questions Competitive Exams में पूछे जाते हैं , यह एक बहुत ही विशेष Part आता है हमारे Gs का | तो आज हम पढेंगे गुप्‍त काल (Gupta Period) : चन्‍द्रगुप्‍त, घटोत्‍कच, समुद्रगुप्‍त, स्‍वर्ण-युग,गुप्‍तकालीन प्रसिद्ध मन्दिर,अजंता चित्रकारी के बारे में !

गुप्‍त काल (Gupta Period) : चन्‍द्रगुप्‍त, घटोत्‍कच, समुद्रगुप्‍त, स्‍वर्ण-युग,गुप्‍तकालीन प्रसिद्ध मन्दिर,अजंता चित्रकारी

  • गुप्‍त काल को भारतीय इतिहास का स्‍वर्ण-युग (Golden Age) कहा जाता है।
  • गुप्‍त वंश की स्‍थापना श्री गुप्‍त ने लगभग 275 ई० में कौशांबी (प्रयाग) में की।
  • श्री गुप्‍त के मृत्‍यु के पश्‍चात् उसका पुत्र घटोत्‍कच शासक बना।
  • घटोत्‍कच का पुत्र चन्‍द्रगुप्‍त  गुप्‍त  (319-335 ई०) गुप्‍त वंश का पहला प्रसिद्ध शासक हुआ।
  • चन्‍द्रगुप्‍त प्रथम ही गुप्‍तवंश का प्रथम स्‍वतन्‍त्र शासक था, जिसकी उपाधि महाराधिराज थी।
  • चन्‍द्रगुप्‍त ने अपने राज्‍यारोहण के समय (319-320 ई०)  गुप्‍त संवत् की स्‍थापना की थी।
  • चन्‍द्रगुप्‍त प्रथम की मृत्‍यु के कुछ सयम बाद उसका पुत्र समुद्रगुप्‍त 335 ई० में राजगद्दी पर बैठा।
  • समुद्रगुप्‍त का इतिहास जानने का प्रमुख स्‍त्रोत इलाहाबाद स्थित प्रयाग-प्रशस्ति स्‍तंभ अभिलेख है इसकी रचना उसके दरबारी कवि हरिषेण ने की थी।
  • समुद्रगुप्‍त एक महान योद्धा तथा कुशल सेनापति था, उसने आर्यावर्त्‍त के 9 शासकों एवं दक्षिणावर्त्‍त के 12 शासकों को पराजित किया।
  • इन्‍हीं विजयों के कारण स्मिथ ने समुद्रगुप्‍त को एशियन इंडियन नेपोलियन कहा है।
  • समुद्रगुप्‍त इतिहास में 100 युद्धों के नायक (Hero of 100 battles) के नाम से प्रसिद्ध है।
  • समुद्रगुप्‍त विष्‍णु का उपासक था, उसने अश्‍वमेघ यज्ञ किया था।
  • समुद्रगुप्‍त‍ि संगीत-प्रेमी था, उसने विक्रमंकतथा कविराज की उपाधियाँ धारण की थी।
  • समुन्‍द्रगुप्‍त ने श्रीलंका के राजा मेघवर्मन को बोधगया में महाबोधि संघाराम नामक बौद्ध-विहार बनाने की अनुमति दी।
  • पुरातात्विक स्‍त्रोत संजान ताम्रपत्र, संगली और काम्‍बे के ताम्रपत्र तथा प्राप्‍त मुद्राओं से ज्ञात होता है कि समुद्रगुप्‍त का उत्‍तराधिकारी रामगुप्‍त था।
  • रामगुप्‍त के शासक बना चन्‍द्रगुप्‍त द्वितीय गुप्‍त-वंश के महानतम् सम्राटों में से एक है।
  • चन्‍द्रगुप्‍त द्वितीय का शासन काल 380 ई० से 412 ई० तक रहा।
  • चन्‍द्रगुप्‍त द्वितीय ने शकों को परास्‍त कर उन्‍हें पश्चिमी भारत  से समाप्‍त किया।
  • शकों पर विजय के उपलक्ष्‍य में चन्‍द्रगुप्‍त द्वितीय ने चाँदी के सिक्‍के चलाए।
  • चन्‍द्रगुप्‍त द्वितीय वैष्‍णव था तथा उसने परमभागवत की उपाधि धारण की।
  • चन्‍द्रगुप्‍त विद्या-प्रेमी था उसके दरबार में नवरत्‍न विद्वानों की एक मण्‍डली रहती थी।
  • नवरत्‍नमण्‍डली में कालिदास, धन्‍वंतरी, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, वो तालभट्ट, घटकर्पर, वाराहमिहिर, वररूचि जैसे विद्वान थे।
  • स्‍कन्‍दगुप्‍त की मृत्‍यु 467 ई० में हुई।
  • विष्‍णुगुप्‍त, कुमारगुप्‍त तृतीय का पुत्र था, वह अन्तिम गुप्‍त शासक था।
  • गुप्‍त साम्राज्‍य की सबसे बड़ी प्रादेशिक इकाई देश थी जिसके शासक को गोप्‍ना कहा जाता था।
  • गुप्‍तकालीन शासन-व्‍यवस्‍था में सम्राट दीवानी विभाग, सेना एवं न्‍याय प्रत्‍येक विभागों का सर्वोच्‍च अधिकारी होता था।
  • गुप्‍त शासक परदैवतद्व महाराजाधिराज, एकाधिराज, परमेश्‍वर तथा चक्रवर्तिन उपाधि धारण करते थे।
  • गुप्‍तकाल में सर्वोच्‍च सेनापति को महादंडनायक कहा जाता था।
  • गजसेना का अध्‍यक्ष महापीलुपति तथा अश्‍वसेना का अध्‍यक्ष महाश्‍वपति कहलाता था।
  • गुप्‍तकाल में दण्‍डपाशिक पुलिस विभाग का प्रधान अधिकारी था।
  • पुलिस विभाग के साधारण कर्मचारी को चाट, भाट, अथवा रक्षिन कहा जाता था।
  • गुप्‍तकाल में मुख्‍य न्‍यायाधीश को महादण्‍डनायक कहा जाता था।
  • गुप्‍तकाल में न्‍यायालयों की चार श्रेणियाँ कुल, श्रेणी, पुत्र तथा राजा का न्‍यायालय थी।
  • कुशल प्रशासन के लिए विशाल साम्राज्‍य को कई प्रान्तों में बाँटा गया था, प्रान्‍तों को देश, भुक्ति अथवा अवनी कहा जात था।
  • भुक्ति के प्रशासक को उपरिक कहा जाता था, उसकी नियुक्ति सम्राट करता था।
  • प्रत्‍येक भुक्ति अनेक विषयों में विभक्‍त था, विषय आधुनिक जनपद के समान होता था।
  • विषय का सर्वोच्‍च अधिकारी विषयपति कहलाता था, वह उपरिक द्वारा नियुक्‍त होता था।
  • नगरों का प्रशासन महापालिकाओं द्वारा चलाया जाता था।
  • पुरपाल नगर का मुख्‍य अधिकारी होता था।
  • प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी, ग्राम का प्रशासन ग्राम सभा द्वारा संचालित होता था।
  • ग्राम सभा के सदस्‍य महत्‍तर तथा प्रमुख ग्रामिक कहलाता था।
  • गुप्‍तकाल में स्‍थानीय स्‍वशासन के अस्तित्‍व में होने का प्रमाण दामोदरपुर ताम्रपत्र अभिलेख से प्राप्‍त होता है।
  • गुप्‍तकालीन समाज मुख्‍या रूप से चार वर्गों ब्राह्मण, क्ष‍त्रिय, वैश्‍य एवं शूद्र में विभाजित था।
  • गुप्‍तकालीन अभिलेखों में सर्वप्रथम कायस्‍थ का उल्‍लेख मिलता है।
  • गुप्‍तकाल स्त्रियों को वह सम्‍मान प्राप्‍त नहीं था, जो उन्‍हें वैदिक युग में प्राप्‍त था।
  • ‘कायस्‍थ’ शब्‍द का उल्‍लेख सर्वप्रथम याज्ञवल्‍क्‍य समृति में तथा जाति के रूप में प्रथम उल्‍लेख ओशनम समृति में हुआ है।
  • 510 ई० में सती प्रथा का प्रथम अभिलेखीय साक्ष्‍य ऐरण अभिलेख में मिलता है।
  • गुप्‍त राजाओं ने सर्वाधिक संख्‍या में स्‍वर्ण मुद्राएँ जारी कीं, जिन्‍हें अभिलेखों में दिनार कहा गया है।
  • गुप्‍तकाल में प्रमुख शिक्षा केन्‍द्र नालन्‍दा, उज्‍जैन, पाटलिपुत्र, काँची, मथुरा, आयोध्‍या आदि थे।
  • गुप्‍तकाल में गणिकाओं का उल्‍लेख मिलता है, वृद्ध वेश्‍याओं को कुट्टनी कहा जाता था।
  • गुप्‍तकालीन ‘कृषि’ का विस्‍तृत वर्णन वृहत्संहिता एवं अमरकोष में मिलता है।
  • कृषि से सम्‍बन्धित कार्यों की देखभाल महाअक्षप‍टलिक एवं कारणिक करते थे।
  • इस काल में सिचांई के लिए रहट या घंटीयन्‍त्र का प्रयोग होता था।
  • गुप्‍तकाल में कृषकों को कुल उपज का 1/6 हिस्‍सा कर के रूप में देना पड़ता था।
  • दशपुर, बनारस, मथुरा और कामरूप कपड़ा उत्‍पादनके बड़े केन्‍द्र थे।
  • वृहत्संहिता में कम-से-कम 22 रत्‍नों का उल्‍लेख मिलता है।
  • गुप्‍तकाल में व्‍यापार अत्‍यन्‍त उन्‍नत स्थिति में था। पेशावर, भड़ौच, उज्‍जैनी, बनारस, प्रयाग, मथुरा, पाटलिपुत्र, वैशाली एवं ताम्रलिप्ति आदि प्रमुख व्‍यापारिक केंद्र थे।
  • इस काल में जल एवं स्‍थल मार्गद्वारा स्त्रि, फारस, रोम, यूनान, लंका, बर्मा, सुमात्रा, तिब्‍बत, चीन एवं पश्चिम एशिया से व्‍यापार होता था।
  • नगरों में व्‍यापार करने वाले श्रेष्‍ठी व वैदेशिक व्‍यापार करने वालों का मुखिया सार्थवाह कहलाता था।
  • गुप्‍तकाल में जिन महत्‍वपूर्ण चीजों का व्‍यापार होता था, वे थीं,- रेशम, मसाले, कपड़ा, धातुएँ, हाथी दाँत एवं समुद्री उत्‍पाद आदि।
  • श्रेणी के प्रधान को ज्‍येष्‍ठक कहा जाता था।
  • श्रेणियाँ आधुनिक बैंक का भी कार्य करती थी।
  • गुप्‍त-युग वैदिक धर्म के पुनरूत्‍थान का काल माना जाता है।
  • गुप्‍तकाल में हिन्‍दू-धर्म के दो मुख्‍य सम्‍प्रदाय वैष्‍णव  (भागवत) और शैव विकसित हुए।
उपयोगिता के आधार पर भूमि के प्रकार
  1. क्षेत्र भूमि – कृषि योग्‍य भूमि।
  2. वास्‍तु भूमि – निवासव योग्‍य भूमि।
  3. चारागाह भूमि – पशुओं के चारा के योग्‍य भूमि।
  4. खिल्‍य- ऐसी भूमि जो जोतने योग्‍य नहीं होती थी।
  5. अग्रहत – गुप्‍तकाल में जंगली भूमि को ‘अग्रहत’ कहते थे।

गुप्‍तकालीन प्रसिद्ध मन्दिर
  1. दशावतार मन्दिर- देवगढ़ (झाँसी)।
  2. विष्‍णु मन्दिर – तिगवा (मध्‍यप्रदेश, जबलपुर)।
  3. शिव मन्दिर – खोह (नगौद मध्‍य प्रदेश)।
  4. पार्वती मन्दिर – नयना कुठार (मध्‍यप्रदेश)।
  5. भीतरगाँव मन्दिर – भीतर गाँव (कानपुर)।
  • अनेक गुप्‍त वैष्‍णव धर्म के अनुयायी थे तथा इसे राजधर्म घोषित किया।
  • गुप्‍तकाल में वैष्‍णव धर्म सम्‍बंधी सबसे महत्‍वपूर्ण अवशेष देवगढ़ के दशावतार मन्दिर (झाँसी) से प्राप्‍त हुआ है।
  • गुप्‍तकाल में निर्मित भीतरी गाँव का मन्दिर कानपुर जिला (उ०प्र०) में स्थित है।
  • विष्‍णु के 10 अवतारोंमें वराह एवं कृष्‍ण की पूजा का प्रचलन इस काल में विशेष रूप से हुआ।
  • इस काल में कालीदास, शूद्रक, विशाख दत्‍त, भारवि, भोट्ट, भास, विष्‍णु शर्मा आदि जैसे कई साहित्‍यकार हुए।
  • कालिदास ने मालविकाग्निमित्रम् अभिज्ञानशाकुंतलम् तथा रघुवंशम् विशाखदत्‍त ने देवी चंद्रगुप्‍तम तथा भाष ने स्‍वप्‍नवासवदत्‍तम् जैो महत्‍वपूर्ण ग्रन्‍थोंकी रचना की।
  • गुप्‍तकाल में पंचतंत्र (विष्‍णु शर्मा) कामसूत्र (वात्‍स्‍यायन), पंचसिद्धांतिका (वराहमिहिर), सूर्य सिद्धान्‍त (आर्यभट्ट) तथा ब्रह्मा सिद्धान्‍त जैसे प्रसिद्ध ग्रन्‍थों की रचना हुई।
  • गुप्‍तकाल में वेदों, अन्‍य वैदिक ग्रन्‍थों, रामायण, सूत्रों एवं स्‍मृतियों को लिपिबद्ध किया गया।
  • गुप्‍तकाल में ही अनेक पुराणों की भी रचना हुई तथा अनेक स्‍मृतियोंको नवीन रूप प्रदान किया गया।
  • इस युग में अनेक दार्शिनिकों का भी आविर्भाव हुआ जिसमें दिडन्‍नाग, वात्‍स्‍यायन व स्‍वामिन प्रमुख हैं। वात्‍सायन के कामसूत्र की रचना इसी युग में हुई।
  • गुप्‍त युग में मूर्तिकला पर से गन्‍धार शैली का प्रभाव समाप्‍त हो गया।
  • आर्यभट्ट ने गुप्‍त युग में ही सर्वप्रथम यह प्रमाणित किया कि पृथ्‍वी अपनी धुरी पर घूमती है तथा पृथ्‍वी व सूर्स के मध्‍य चन्‍द्रमा आ जाने से सूर्यग्रहण होता है।
  • दशमलव प्रणाली का भी आविष्‍कार  आर्यभट्ट ने इसी युग में किया।
  • आर्यभट्ट ने आर्यभट्टीयम एवं सूर्यसिद्धान्‍त  नामक ग्रन्‍थों की रचना की जो नक्षत्र विज्ञान से संबंधित थी।
  • आर्यभट्ट, वराहमिहिर, धन्‍वन्‍तरि, ब्रह्मगुप्‍त आदि चन्‍द्रगुप्‍त द्वितीय के दरबार में रहने वाले प्रमुख विद्वान थे।
  • ब्रह्मगुप्‍त इस गाल के प्रसिद्धगणितज्ञ थे, उन्‍होंने ब्रह्मा सिद्धान्‍त नामक ग्रन्‍थ की रचना ग्रन्‍थ की रचना की।
  • वाराहमिहिर गुप्‍तकाल के प्रसिद्ध खगोलशास्‍त्री थे, उन्‍होंने वृहत् संहिता एवं पंचसिद्धांतिका नाम प्रसिद्ध ग्रन्‍थों की रचना की।
  • पाल्‍काल नामक पशु चिकित्‍सक ने ‘हाथियों’ के रोगों से सम्‍बन्धित चिकित्‍सा हेतु हस्‍त्‍यायुर्वेद नामक प्रसिद्ध ग्रन्‍थोंकी रचना की।
  • नागार्जुन इस काल का प्रसिद्ध चिकित्‍सक था, उसने रस चिकित्‍सा नामक प्रसिद्ध ग्रन्‍थ की नचना की।
  • धातु विज्ञान का इस युग में अत्‍यधिक विकास हुआ। नागार्जुन ने इस काल में सिद्ध किया कि सोना, चाँदी, लोहा, ताँबा आदि खनिज धातुओं में रोग निवारण की शक्ति विद्यमान है।

अजंता चित्रकारी (Ajanta Painting)

  • अजंता की गुफाओं के भित्तिचित्र उस युग के कलाकारों की [td_smart_list_end]कुशलता को दर्शाते हैं।
  • अजंता की गुफाओं का संबंध बौद्धधर्म की महायान शाखा से हैं।
  • अजंता में ’29’ गुफाएँ निर्मित हुई जिनमें अब सिर्फ 6 का अस्तित्‍व बचा है।
  • बची हुई गुफाओं में गुफा संख्‍या -16, 17 ही गुप्‍तकालीन हैं।
  • गुफा संख्‍या-16 में उत्‍कीर्ण मरणासन्‍न राजकुमारी का चित्र विशेष रूप में प्रशंसनीय है।
  • गुफा संख्या -17 का चित्र चित्रशाला के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें बुद्ध की जीवनी से संबन्धित चित्र उत्‍कीर्ण हैं।
  • अजंता शैली के अन्‍य चित्र मालवा के बाघ नामक स्‍थान से भी प्राप्‍त हुए हैं।
  • लगभग 1.5 हजार वर्ष निर्मित दिल्‍ली में एक लौह स्‍तम्‍भ में अभी तक जंग नहीं लगा है, जो तत्‍कालीन धातुकर्म विज्ञान के काफी विकसित होने का प्रमाण है।

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