Garun Puran Book PDF In Hindi Free Download
दोस्तों आज हम आपके लिए Garun Puran का PDF लेकर आये है, अगर आप Online इन्टरनेट पर Garun Puran PDF In Hindi Download ढूंढ रहे हैं तो हम आपको बता दें कि हम आपको यहाँ Garun Puran Book का PDF, Hindi में लेकर आये हैं |
Garun Puran Book PDF Details :-
Book Name | Garun Puran |
Language | Sanskrit Aur Hindi |
Size | 6 MB |
Page | 275 |
Formate |
गरुडपुराण-सारोद्धार पहला अध्याय
भगवान् विष्णु तथा गरुडके संवाद में गरुडपुराण-सारोद्धारका उपक्रम, पापी मनुष्यों की इस लोक तथा परलोक में होने वाली दुर्गति का वर्णन, दशगात्र के पिण्डदान से यातनादेहका निर्माण
धर्मदृढबद्धमूलो वेदस्कन्धः पुराणशाखाळ्यः । क्रतुकुसुमो मोक्षफलो मधुसूदनपादपो जयति ॥ 1 ॥
नैमिषेऽनिमिषक्षेत्रे ऋषयः शौनकादयः । सत्रं स्वर्गाय लोकाय सहस्त्रसममासत ॥ 2 ॥
धर्म ही जिसका सुदृढ़ मूल है, वेद जिसका स्कन्ध (तना) है, पुराणरूपी शाखाओंसे जो समृद्ध है, यज्ञ जिसका पुष्प है और मोक्ष जिसका फल है, ऐसे भगवान् मधुसूदनरूपी पादप – कल्पवृक्षकी जय हो ॥ 1 ॥ देव-क्षेत्र नैमिषारण्यमें स्वर्गलोककी प्राप्तिकी कामनासे शौनकादि ऋषियोंने (एक बार) सहस्रवर्षमें पूर्ण होनेवाला यज्ञ प्रारम्भ किया ॥ 2 ॥
एकदा मुनयः सर्वे प्रातर्हतहुताग्नयः । सत्कृतं सूतमासीनं पप्रच्छुरिदमादरात् ॥ 3 ॥
एक समय प्रातःकालके हवनादि कृत्योंका सम्पादन करके उन सभी मुनियोंने सत्कार किये गये आसनासीन सूतजी महाराजसे आदरपूर्वक यह पूछा- ॥ 3 ॥
कथितो भवता सम्यग्देवमार्गः सुखप्रदः । इदानीं श्रोतुमिच्छामो यममार्ग भयप्रदम् ॥ 4 ॥
तथा संसारदुःखानि तत्क्लेशक्षयसाधनम् । ऐहिकामुष्मिकान् क्लेशान् यथायद्वक्तुमर्हसि ॥ 5 ॥
ऋषियोंने कहा- (हे सूतजी महाराज !) आपने सुख देनेवाले देवमार्गका सम्यक् निरूपण किया है। इस समय हमलोग भयावह यममार्गके विषयमें सुनना चाहते हैं। आप सांसारिक दुःखोंको और उस क्लेशके विनाशक साधनको तथा इस लोक और परलोकके क्लेशोंको यथावत् वर्णन करनेमें समर्थ हैं। [अतः उसका वर्णन कीजिये] ॥ 4-5॥
सूत उवाच
शृणुध्वं भो विवक्ष्यामि यममार्गं सुदुर्गमम् । सुखदं पुण्यशीलानां पापिनां दुःखदायकम् ॥ 6 ॥
यथा श्रीविष्णुना प्रोक्तं वैनतेयाय पृच्छते । तथैव कथयिष्यामि संदेहच्छेदनाय वः ॥ 7॥
सूतजी बोले- हे मुनियो! आपलोग सुनें। मैं अत्यन्त दुर्गम यममार्गके विषयमें कहता हूँ, जो पुण्यात्माजनोंके लिये सुखद और पापियोंके लिये दुःखद है। गरुडजीके पूछनेपर भगवान् विष्णुने (उनसे) जैसा कुछ कहा था, मैं उसी प्रकार आपलोगोंके संदेहकी निवृत्तिके लिये कहूँगा ॥ 6-7॥
कदाचित् सुखमासीनं वैकुण्ठं श्रीहरिं गुरुम् । विनयावनतो भूत्वा पप्रच्छ विनतासुतः ॥ 8॥
किसी समय वैकुण्ठमें सुखपूर्वक विराजमान परम गुरु श्रीहरिसे विनतापुत्र गरुडजीने विनयसे झुककर पूछा-
गरुड उवाच भक्तिमार्गों बहुविधः कथितो भवता मम । तथा च कथिता देव भक्तानां गतिरुत्तमा ॥ 9 ॥
अधुना श्रोतुमिच्छामि यममार्गं भयंकरम् । त्वद्भक्तिविमुखानां च तत्रैव गमनं श्रुतम् ॥ 10 ॥
सुगमं भगवन्नाम जिह्वा च वशवर्तिनी । तथापि नरकं यान्ति धिग् धिगस्तु नराधमान् ॥ 11 ॥
अतो मे भगवन् ब्रूहि पापिनां या गतिर्भवेत् । यममार्गस्य दुःखानि यथा ते प्राप्नुवन्ति हि ॥ 12 ॥
गरुडजीने कहा- हे देव! आपने भक्तिमार्गका अनेक प्रकारसे मेरे समक्ष वर्णन किया है और भक्तोंको प्राप्त होनेवाली उत्तम गतिके विषयमें भी कहा है। अब हम भयंकर यममार्गके विषयमें सुनना चाहते हैं। हमने सुना है कि आपकी भक्तिसे विमुख प्राणी वहीं (नरकमें) जाते हैं ॥ 9-10 ॥ भगवान्का नाम सुगमतापूर्वक लिया जा सकता है, जिह्वा प्राणीके अपने वशमें है तो भी लोग नरकको जाते हैं, ऐसे अधम मनुष्योंको बार-बार धिक्कार है। इसलिये हे भगवन्! पापियोंको जो गति प्राप्त होती है तथा यममार्गमें जैसे वे अनेक प्रकारके दुःख प्राप्त करते हैं, उसे आप मुझसे कहें ॥ 11-12 ॥
Garun Puran Book PDF In Hindi Free Download :-
Garun Puran PDF In Hindi Download : Click Here