मौर्योत्तर काल के प्रमुख राजवंश (Important Dynasties of Mauryottar Period)
मौर्योत्तर काल का इतिहास : शुंग वंश, कण्व वंश, वाकाटक वंश, शक, कलिंगराज खारवेल: दोस्तों , आज हम Notes In Hindi Series में आपके लिए लेकर आये हैं मौर्योत्तर काल का इतिहास से सम्बन्धित सामान्य ज्ञान ! मौर्योत्तर काल का इतिहास से बहुत से Questions Competitive Exams में पूछे जाते हैं , यह एक बहुत ही विशेष Part आता है हमारे Gs का | तो आज हम पढेंगे शुंग वंश, कण्व वंश, वाकाटक वंश, शक, कलिंगराज खारवेल के बारे में !
- 187 ई० पू० से 240 ई० पू० तक का काल भारतीय इतिहास में ‘मौर्योत्तर काल’ के नाम से जाना जाता है।
- इस काल में मगध सहित भारत के विभिन्न हिस्सों में ब्राह्मण साम्राज्यों (शुंग, कण्व, सातवाहन एवं वाकाटक) का उदय हुआ तथा विदेशी आक्रमण हुए।
- इस काल में सशक्त केन्द्रीय सत्ता के अभाव में क्षेत्रीय राजा स्वतन्त्र होने लगे जिसमें कलिंग का राजा खारवेल प्रमुख था।
शुंग वंश (Sunga Vansh)
- शु्ंग वंश का संस्थापक पुष्यमित्र शंग था, जो अन्तिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ का सेनापति था।
- पुराण तथा हर्षचरित के अनुसार 185 ई० पूर्व में पुष्यमित्र शासक बना था।
- हर्षचरित से ज्ञात होता है कि पुष्यमित्र शुंग ब्राह्मण था।
- पुष्यमित्र शुंग ने अपनी राजधानी विदिशा में स्थापित किया।
- पुष्यमित्र के शासनकाल में यवन आक्रमण हुए जिसका नेतृत्व डेमेट्रियस ने किया।
- पुष्यमित्र के शासनकाल में यवन आक्रमण हुए जिसका नेतृत्व डेमेट्रियस ने किया।
- पुष्यमित्र शुंग ने इण्डो-यूनानी शासक मिनांडर को पराजित किया।
- पतंजलि जैसे महान विद्वानर पुष्यमित्र शुंग के शासनकाल में हुए थे।
- शुंगकाल में भरहुत, बोध गया तथा साँची के स्तूपों को नया रूप प्रदान किया गया।
- पुष्यमित्र ने वैदिक धर्म को राजधर्म घोषित किया तथा पालि के स्थान पर संस्कृत को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया।
- पुष्यमित्र के प्रोत्साहन के परिणामस्वरूप पतंजलि का महाभाष्य तथा मनु-स्मृति की रचना किया।
- पुष्यमित्र शुंग की मृत्यु 148 ई० पू० में हुई, शुंग वंश का अन्तिम शासक देवभूति था।
- देवभूति की हत्या उसके मन्त्री वासुदेव कण्व ने कर दी।
- शुंग वंश का पतन 72 ई० पू० में हुआ।
- विदिशा का गरूड़ध्वज, भाजा का चैत्य एवं विहार, अजन्ता का नवाँ चैत्य मन्दि, नासिक तथा काने के चैत्य , मथुरा की अनेक यक्ष-यक्षिणियों की मूर्तियाँ शुंग-कला के ही उदाहरण हैं।
कण्व वंश (Kanav Vansh)
- मगध पर कण्व वंश के पतन के पश्चात सातवाहन-वंश का प्रादुर्भाव हुआ।
- सातवाहन शासकों ने अपनी राजधानी प्रतिष्ठान (आन्ध्र प्रदेश) में स्थापित की।
- सातवाहन वंश के प्रमुख शासक थे सिमुक, शातकर्णि, गौतमीपुत्र शातकर्णि, वशिष्ठी पुत्र, पुलुवामी तथा यज्ञश्री शातकर्णि।
- गौतमीपुत्र शातकर्णि को सातवाहन-वंश का पुनरूद्धारक कहा जाता है।
- सातवाहन शासक शातकर्णि ने दो अश्वमेघ तथा एक राजसूय यज्ञ किया।
- गौतमीपुत्र शातकर्णि की विजयों के विषय में नासिक अभिलेख से पता चलता है।
- नरासिक अभिलेख (गौतमी बल श्री) में उल्लिखित है कि गौतमीपुत्र शतकर्णि के घोड़े तीन समुद्रों का पानी पीते थे।
- सातवाहन शासकों के समय प्रसिद्ध साहित्यकार हाल एवं गुणाढ़य थे।
- हाल ने गाथा सप्तशतक तथा गुणाढ्य ने बृहतकथा नामक पुस्तकों की रचना की।
- सातवाहन शासकों ने चाँदी, बाँबे, सीसा, पोटीन और काँसे की मुद्राओं का प्रचलन किया।
- गौतमीपुत्र शतकर्णि ने अपने शासन के 24वें वर्षमें ब्राह्मणों को भूमि-अनुदान देने की प्रथा आरम्भ की।
- सातवाहन समाज मातृसत्तात्मक था तथा उनकी भाषा प्राकृत एवं लिपि ब्राह्मी थी।
- कार्ले का चैत्य, अजंता-एलोरा की गुफाओं का निर्माण एवं अमरावती कला का विकास कला के क्षेत्र में सातवाहनों के उल्लेखनीय योगदान हैं।
- कथा सरितसागर एवं कथाकोष्ज्ञ नामक संस्कृत भाषा के प्रसिद्ध ग्रन्थों की रचना सातवाहन काल में हुई।
वाकाटक वंश (Vakatak Vansh)
- सातवाहनों के पतनके पश्चात् दक्षिण में शासन में आने वाले ब्राह्मण वंश वाकाटक थे।
- इस वंश का संस्थापक विन्ध्यशक्ति था, वाकाटकों का निवास स्थान सम्भवत: विदर्भ था।
- वाकाटक शासकों में प्रवरसेन एक मात्र शासक है, जिसे सम्राट की उपाधि दी गयी है।
- प्रवरसेन अनेक वैदिक यज्ञ किये जिनमें चार अश्वमेघ यज्ञ थे।
- प्रवरसेन ने एक प्रसिद्ध कृति सेतुबंध की रचना की।
विदेशी आक्रमण (Foreign Invasions)
- मौर्योत्तर काल में भारत पर हुए इण्डो–युनानी आक्रमण की जानकारी गार्गी संहिता एवं हाथीगुम्फा अभिलेख से प्राप्त हेाती है।
- मौर्योत्तर काल में भारत आए विदेशी आक्रमणकारी क्रमश: इण्डों-यूनानी, शक, हिन्द-पार्थियन तथा कुषाण थे।
- ई० पू० 183 में मौर्योत्तर काल का प्रथम यूनानी आक्रमण डिओडोटस प्रथम द्वारा किया गया।
- टेमोट्रियस ने हिन्दुकुश को पार कर पंजाब के विस्तृत भू-भाग पर अधिकार कर लिया तथा साकल को अपनी राजधानी बनायी।
- यूनानी अनुवृत्तों में डेमेड्रियस को भारत का राजा यूक्रेटाइडीज ने भी भारतके भागों को जीतकर तक्षशिला को अपनी राजधानी बनाया।
- सबसे प्रतापी इण्डो-युनानी शासक मीनाण्डर (165-145 ई० पू०) था, उसे बौद्ध धर्म की दीक्षा ली।
- कनिष्क ने बौद्ध-धर्म को राजधर्म बनाया तथा कनिष्कपुर, पुरूषपुर, मथुरा व तक्षशिला आदि स्थानों पर स्तूप एवं विहार बनवाये।
- कनिष्क के शासनकाल में चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन कश्मीर के कुण्डलवन में हुआ।
- चतुर्थ बौद्ध संगीति में त्रिपिटकों पर टीका लिखे गए एवं इन्हें महाविभाष सूत्र में संकलित किया गया।
- महाविभाष सूत्र को बौद्ध धर्म का विश्वकोष कहा जाता है, इसके रचनाकार वसुमित्र हैं।
- चरक कनिष्क का राजवैद्य था, जिसने चरकसंहित की रचना की थी।
- अश्वघोष, चरक, नागार्जुन, महाचेत, संघरक्ष तथा पार्श्व कनिष्क के दरबार की शोभा बढ़ाते थे।
- कनिष्क की मृत्यु 102 ई० में ही गयी, उसकी हत्या उसके सेनापतियों ने ही कर दी।
- कुषाण वंश का अन्तिम शासक वासुदेव था।
- बौद्ध-धर्म को संरक्षण प्रदान करने कारण कनिष्क को दूसरा अशोक कहा जाता है।
- प्रसिद्ध रेशम मार्ग (भातर-चीन) पर नियंत्रण रखने वालों में कुषाण सर्वाधिक प्रसिद्ध थे।
शक (Shakas)
- शक एक घुमक्कड़ जाति थी और उनका मूल निवास स्थान मध्य एशिया था।
- भारतीय शक राजाओं में सम्भवत: पहला शासक माउस (Moues) था, जिसे यूनानी इतिहासकारों ने मावेज कहा है।
- भारत में शक शाकस स्वयं को क्षत्रप (प्रांत का शासक) कहते थे।
- पश्चिमी भारत (महाराष्ट्र) में शकों का एक प्रसिद्ध राजवंश हुआ जिसे क्षहरात-वंश कहते हैं।
- क्षहरात वंश का सबसे प्रमुख शासक नहपान था, सम्भवत: उसने 119 ई० से 124 ई० तक राज्य किया था।
- शकों के एक वंश का उज्जैन में भी आविर्भाव हुआ, जिसे चष्टन वंश कहा जाता है।
- चष्टन वंश उज्जैन व काठियावाड़ में शासन करता था।
- चष्टन वंश का सबसे प्रतापी शासक रूद्रदामन-1 (130-150 ई० पू०) था तथा उसकी राजधानी उज्जैन थी।
- रूद्रदामन ने कठियावाड़ की सुदर्शन झील का पुनर्निमाण करवाया था।
- रूद्रदामन संस्कृत भाषा और अलंकार शास्त्र का प्रकांड पंडित था, उसने संस्कृत भाषाके पहले नाटक की रचना कराई।
- रूद्रदमान –l ने भारतीय इतिहास में पहली बार शुद्ध संस्कृत भाषा में गिरनार अभिलेख खुदवाया।
- 58 ई० पू० में उज्जैन के एक स्थानीय राजा ने शकोंको पराजित करके बाहर कर दिया तथा विक्रमादित्य की उपाधि धारण की।
- शकों पर विजय के उपलक्ष्य में 58 ई० पू० से एक नया संवत् विक्रम संवत् के नाम से प्रारम्भ हुआ।
कलिंगराज खारवेल (Kalingral Kharval)
- खारवेल के विषय में जानकारी का प्रमुख स्त्रोत हाथीगुम्फा अभिलेख है।
- खारवेल ने प्राची नदी के दोनोंओर एक महाविजय प्रासाद बनवाया।
- राजा खारवेल जैनधर्म का अनुयायी था तथा उसे भिक्षुराज भी कहा गया है।
- उसने उत्तरी भारत पर आक्रमण किया तथा राजगृह को घेर लिया।
मौर्योत्तरकालीन कला एवं साहित्य
- भारहुत स्तूप के चारों शुंगकाल में 7 फुट ऊँची एक चाहरदीवारी बनाकर चार तोरणद्वार लगाये गये।
- परिवेष्टनी और तोरणद्वार बहुसंख्यक स्थापत्य–कृत्यों द्वारा अलंकृत किये गये।
- ई० पू० पहली शताब्दी के अन्त में मथुरा में जैनियों ने एक विशेष कला-शैली मथुरा कला का विकास किया।
- इस काल में मथुरा मूर्तिकला का केन्द्र था।
- ई० पू० दूसरी शताब्दी में दक्कन में अमरावती कला का विकास हुआ।
- कार्लें का चैत्य, अजंता एवं एलोरा की गुफाओं का निर्माण सातवाहनों की महत्वपूर्ण स्थापत्य कृतियाँ है।
- ह्वेनसांग ने कनिष्क के 178 विहारों तथा स्तूपोंका वर्णन किया है।
- बुद्धचरित् (संस्कृत भाषा में) तथा सूत्रालंकार की रचना अश्वघोष ने की।
- बुद्धचरित् को बौद्ध धर्म का महाकाव्य माना जाता है।
- सौन्दरानन्द नाम प्रसिद्ध काव्य की रचना अश्वघोष ने कनिष्क के काल में की।
- कनिष्क काल के एक प्रसिद्ध विद्वान नागार्जुन ने शून्यवादी का प्रदतिपादन किया।
- नागार्जुन को भारतीय आंइस्टीन कहा गया।
- नागार्जुन ने अपने ग्रन्थ माध्यमिक सूत्र में सृष्टि सिद्धान्त (Theory of Relativity) को प्रस्तुत किया।
- वसुमित्र ने बौद्ध धर्म के त्रिपिटक पर महाविभाषसूत्र नामक टीका लिखी।
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