दक्षिण भारत का इतिहास : पल्लव वंश, चोल वंश, चालुक्य वंश,राष्ट्रकूट वंश

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दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश (Important Dynasties of South India)

दक्षिण भारत का इतिहास : पल्लव वंश, चोल वंश, चालुक्य वंश,राष्ट्रकूट वंश : दोस्तों , आज हम Notes In Hindi Series में आपके लिए लेकर आये हैं दक्षिण भारत का इतिहास से सम्बन्धित सामान्य ज्ञान ! दक्षिण भारत का इतिहास से बहुत से Questions Competitive Exams में पूछे जाते हैं , यह एक बहुत ही विशेष Part आता है हमारे Gs का | तो आज हम पढेंगे पल्लव वंश, चोल वंश, चालुक्य वंश,राष्ट्रकूट वंश के बारे में !

पल्‍लव वंश

  • पल्‍लव वंश की स्‍थापना सिंह विष्‍णु (575-600 ई०) ने की, उसने काँची (तमिलनाडु) को अपनी राजधानी बनाया, वह वैष्‍णव धर्म का उपासक था।
  • प्रसिद्ध ग्रन्‍थ किरातार्जुनीयम के रचनाकार भारवि सिंह विष्‍णु का दरबारी कवि था।
  • पल्‍लव वंश के प्रमुख शासक महेन्‍द्रवर्मन-l (606 ई० से 630 ई०), नरसिंहवर्मन-l (630-668 ई० तक), महेन्‍द्रवर्मन-ll  (668-670 ई०), परमेंश्‍वर वर्मन-l (670-695 ई०), नरसिंहवर्मन-ll (695-722 ई०) दंपतवर्मन-l (795-844 ई०) आदि थे।
  • पल्‍लव वंश का अन्तिम शासक अपराजित (879-897 ई०) था।
  • इस वंश के शासक नरसिंहवर्मन-l द्वारा एकाश्‍मक रथ (महाबलिपुरम्) का निर्माण कराया गया।
  • एकाश्‍म रथ चट्टान काटकर बनाया गया है तथा इसे धर्मराज रथ भी कहा जाता है।
  • धर्मराज रथ तथा उसी स्‍थान पर बने 6 अन्‍य मन्दिर सामूहिक रूप सवे सप्‍तरथ अथवा 7 पैगोडा कहलाते हैं।
  • कैलाशनाथ मन्दिर (काँची) का निर्माण नरसिंहवर्मन-ll तथा मुक्‍तेश्‍वर एवं बैकुंठ पेरूमाल मन्दिर (दोनों काँची में) का निर्माण पल्‍लव शासक नन्‍दी वर्मन ने किया।
  • पल्‍लव शासक नरसिंहवर्मन-l द्वारा वातापीकोंडा की उपाधि धारण की गई।
  • पल्‍लव शाक महेन्‍द्रवर्मन-। क्षरा मतविलास प्रहसन नामक प्रसिद्ध ग्रन्‍थ की रचना की गई।
  • दशकुमार चरितम् के रचनाकार दंडी पल्‍लव शासक नन्‍दीवर्मन का दरबारी कवि था।
  • पल्‍लव शासक ‘नन्‍दीवर्मन’ का ही समकालीन प्रसिद्ध वैष्‍णव संत तिरूमडन्‍ग अलवर थे।
  • काँची के पल्‍लवों के संदर्भ में हमें प्रथम जानकारी हरिषेण के प्रयाग प्रशस्ति एवं चीनी यात्री ह्वेसांग के यात्रा विवरण से प्राप्‍त होती है।

पल्‍लव-कालीन मन्दिरोंकी निर्माण शैलियाँ

  • एकाम्‍बरनाथ एवं सितनवासल मन्दिरों के निर्माण में पल्‍लव नरेश महेंद्रवर्मन-। द्वारा अपनाई गई गुहा शैली का प्रयोग किया गया है।
  • पल्‍लव नरेश ‘नरसिंहवर्मन-।’ द्वारा अपनाई गई माम्‍मल शैली का प्रयोग ‘महाबलिपुरम्’ के 5 मन्दिरों में किया गया है।
  • राजसिंह शैली का प्रयोग काँची के कैलाशनाथ मन्दिर में देखने को मिलता है।
  • पल्‍लवकालीन मन्दिरों की प्रमुख विशेषता है कि इन्‍हें एक चट्टान को काटकर बनाया गया है।
  • पल्‍लवों के राजनीतिक एवं सांस्‍कृतिक गतिविधियों का केंद्र काँची था।
  • पल्‍लवों का मूल-निवास स्‍थान नहीं था, बल्कि उनका मूल निवास-स्‍थान तोण्‍डमण्‍डलन था।
  • पल्‍लव वंश के प्रथम शासक सिंहविष्‍णु ने माम्‍मलपुरम् के आदि वराह गुहा मन्दिर का निर्माण किया।
  • पल्‍लव शासक नरसिंहवर्मन-। ने चालुक्‍य शासक पुलकेशिन-।। को तीन युद्धों में परास्‍त किया तथा उसकीर पीठ पर ‘विजय’शब्‍द अंकित कराया।
  • पल्‍लव शासक नरसिंहवर्मन-। ने एक बंदरगाह नगर महाबिलपुरम (माम्‍मलपुरम्) की स्‍थापना काँची  के नजदीक की।
  • काँची के ऐरावतेश्‍वर मन्दिर का निर्माण ‘राजसिंह शैली’  में नरसिंहवर्मन-।। ने करवाया।
  • पल्‍लव शासक नंदिवर्मन-।। को राष्‍ट्रकूट नरेश दंतिदुर्गा ने परास्‍त कर राजधानी ‘काँची’ पर अधिकार कर लिया
  • पल्‍लव शासक दंतिवर्मन (796-847 ई०) ने मद्रास के निकट पार्थसारथी मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया।
  • ‘दंतिवर्मन’को पल्‍लव अभिलेखों में पल्‍लव कुलभूषण की उपाधि से सम्‍मानित किया गया है।

राष्‍ट्रकूट वंश

  • दंतिदुर्गा ने 752 ई० में राष्‍ट्रकूट राजवंश की स्‍थापना की।
  • राष्‍ट्रकूट वंश की राजधानी म्‍यानखेड (वर्तमान शोलापुर के निकट) थी।
  • इस वंश के प्रमुख शासक इस प्रकार थे- दंतिदुर्गा (736-56 ई०) कृष्‍णा-। (756-72 ई०) , ध्रुव (779-93 ई०), गोविंद-।।। (793-814 ई०), अमोघवर्ष (815-78 ई०), इन्‍द्र-।।। (914-27 ई०) तथा कृष्‍णा-।।। (936-65) आदि।
  • कनौज पर अधिकार करने के उद्देश्‍य से त्रिपक्षीय संघर्ष में सर्वप्रथम भाग लेने वाला राष्‍ट्रकूट शासक ध्रुव था।

महत्‍वपूर्ण तथ्‍य-

  • राष्‍ट्रकूट शासक इन्‍द्र-।।। के शासनकाल में अरब यात्री अल-मसूदी भारत के दौरे पर आया। उसके द्वारा तत्‍कालीन राष्‍ट्रकूट शासकों को भारत के सर्वश्रेष्‍ठ शासक कहा गया।
  • प्रतिहार नरेश वत्‍सराज एवं पाल नरेश धर्मपाल को त्रिपक्षीय संघर्ष में राष्‍ट्रकूट शासक ध्रुव ने पराजित किया।
  • राष्‍ट्रकूट नरेश ‘ध्रुव’ को धारावर्ष के नाम से भी जाना जाता था। ,
  • चक्रायुद्ध एवं उसके संरक्षक पाल नरेश धर्मपाल तथा प्रतिहार शासक नागभट्ट-।। को त्रिपक्षीय संघर्ष में परास्‍त करने वाला राष्‍ट्रकूट शासक गोविंद-।।। था।
  • गोविंद-।।। ने पांड्य, पल्‍लव एवं गंग शासकों के एक संघ को नष्‍ट कर दिया।
  • कन्‍नड़ भाषा में रचित कविराजमार्ग का रचनाकार राष्‍ट्रकूट शासक अमोघवर्ष जैन धर्म का अनुयायी था।
  • जिनसेन, महावीराचार्य तथा सक्‍तायन जैसे प्रसिद्ध साहित्‍यकार राष्‍ट्रकूट शासक ‘अमोघवर्ष’ के दरबार में थे।
  • जिनसेन ने आदि पुराण, ‘महावीराचार्य’ ने गणितसार संग्रह तथा ‘सक्‍तायन’ ने अमोघवृत्ति नामक प्रसिद्ध ग्रंथों  की रचना की।
  • अमोघवर्ष ऐसा राष्‍ट्रकूट शासक था जिसने तुंगभद्रा नदी में जलसमाधि लेकर अपनी जीवन-लीला समाप्‍त की।
  • राष्‍ट्रकूट वंश में अन्तिम महान शासक कृष्‍ण-।।। हुआ।
  • कल्‍याणी के चालुक्‍यवंशी शासक तैलप-।। ने 973 ई० में राष्‍ट्रकूट शासक कर्क को परास्‍त कर इस वंश के शासन का अन्‍त कर दिया।
  • राष्‍ट्रकूट शासक शैव, वैष्‍णव, शाक्‍त सम्‍प्रदायोंके साथ-साथ जैन धर्म के भी उपासक थे।
  • अरब यात्री सुलेमान ने अमोघवर्ष की गणना विश्‍व के चार महान शासकों से की।

      ऐलोरा की गुफाएँ

  • राष्‍ट्रकूट शासकों ने ऐलोरा में 34 शैलचित्र गुफाएँ निर्मित करवाई।
  • उपरोक्‍त में 1 से 12 बौद्ध संप्रदायों से संबंधित है।
  • गुफा संख्‍या 13 से 29 हिन्‍दुओं से संबंधित हैं।
  • गुफा संख्‍या 30 से 34 जैन संप्रदाय से संबंधित है।

 

चालुक्‍य वंश (कल्‍याणी)

  • तैलप-।। ने चालुक्‍य वंश (कल्‍याणी) की स्‍थापना की।
  • तैलप-।। ने अपनी राजधानी मान्‍यखेड में स्‍थापित की।
  • चालुक्‍य वंश (कल्‍याणी) के शासक सोमेश्‍वर- ने मान्‍यखेड़ा से हटाकर राजधानी कनार्टक के कल्‍याणी में स्‍थापित की।
  • विक्रमादित्‍य- Vl को कल्‍याणी के चालुक्‍य वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक माना जाता है।
  • विक्रमादित्‍य- Vl के दरबार में विज्ञानेश्‍वर तथा विल्‍हण जैसे विद्वान थे।
  • मिताक्षरा (हिन्‍दू विधि पर ग्रन्‍थ) नामक याज्ञवल्‍वय् स्‍मृति पर टीका की रचना विज्ञानेश्‍वर ने की।
  • विक्रमादित्‍य-Vl के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालने वाले ग्रन्‍थ विक्रमांकदेवचरित् की रचना विल्‍हण ने की।
  • विक्रमादित्‍य-Vl  द्वारा 1076 ई० में चालुक्‍य-विक्रम संवत् की शुरूआत की।
  • कल्‍याणी के चालुक्‍य वंश का अन्तिम शासक सोमेश्‍वर-Vl था।
  • देवगिरिके यादव शासक होयसल नरेश वीरबल्‍लाल ने 1190 ई० में सोमेश्‍वर-Vl के परास्‍त कर वंश के शासन का अन्‍त कर दिया।

चालुक्‍य वंश (वातापी)

  • इस वंश को बादामी के चालुक्‍य भी कहते हैं।
  • इसकी स्‍थापना जसिंह ने की तथा वातापी को अपनी राजधानी बनाया।
  • पुलकेशिन-।, कीर्तिवर्मन, पुलकेशिन-।।, विक्रमादित्‍य, विनयादित्‍य तथा विजयादित्‍य आदि इस वंश के प्रमुख शासके थे।
  • हर्षवर्धन को हराकर पुलकेशिन-।। द्वारा परमेश्‍वर की उपाधि धारण की गई।
  • पुलकेशिन-।। ने दक्षिणापथेश्‍वर की उपाधि धारण की।
  • पल्‍ल्‍ववंशीय शासक परसिंहवर्मन-। ने पुलकेशिन-।। को हराकर उसकी राजधानी वातापी (बादामी)
  • को अपने कब्‍जे में ले लिया।
  • पुलकेशिन-।। की उपरोक्‍त युद्ध में सम्‍भवत: मृत्‍यु हो गई, इसी उपलक्ष्‍य में नरसिंहवर्मन-। ने वातापीकोंडा की उपाधि की।
  • पुलकेशिन-।।  के विषय में ऐतिहासकि विववरण ऐहियोल प्रशस्ति अभिलेख से प्राप्‍त होते हैं।
  • पुलकेशिन-।।  के द्वारा जिनेन्‍द्र के मेगुती मन्दिर का निर्माण कराया गया।
  • पुलकेकिशन-।। को एक फारसी दूतमण्‍डल की आगवानी करते हुए अजंता के एक गुहा चित्र में दर्शाया गया है।
  • कीर्तिवर्मनको वातापी का निर्माता माना जाता है।
  • इस वंश के शासक विनादित्‍य द्वारा मालवा के विजय के पश्‍चात्‍ सकलोत्‍तरपथनाथ की उपाधि धारण की गई।
  • अरबों का ‘दक्‍कन-आक्रमण’ विक्रमादित्‍य-।। के शासनकाल में हुआ।
  • विक्रमादित्‍य-।। ने अरबों के विरूद्ध सफलता प्राप्‍त करने के लिए ‘पुलकेशी’ को अवजिनाश्रय की उपाधि से सम्‍मानित किया।
  • पट्टद्कल के प्रसिद्ध विरूपाक्ष महादेव मन्दिर का निर्माण विक्रमादित्‍य-।। की प्रथम पत्‍नी लोकमहादेवी द्वारा कराया गया।
  • विक्रमादित्‍य-।। की दूसरी पत्‍नी त्रैलोक्‍य देवी द्वारा त्रैलोकश्‍वर मन्दिर का निर्माण विक्रमादित्‍य-।। की प्रथम पत्‍नी लोकमहादेवी द्वारा कराया गया।
  • वातापी अथवा बादामी के चालुक्‍य वंश का अन्तिम शासक कीर्तिवर्मन-।। था, जिसे परास्‍त कर उसके सामंत दन्तिदुर्ग ने राष्‍ट्रकूट वंश की स्‍थापना की तथा यह वंश समाप्‍त हो गया।

चालुक्‍य वंश (वेंगी)

  • वेंगी के चालुक्‍य वंश की स्‍थापना विष्‍णुवर्धन ने की, इसकी राजधानी वेंगी (आंध्र प्रदेश) थी।
  • जयसिंह-।, इन्‍द्रवर्धन, विष्‍णुवर्धन-।।, जयसिंह-।।, तथा विष्‍णुवर्धन-।।। आदि इस वंश के प्रमुख शासक था।
  • वेंगी के चालुक्‍य वंश का सबसे प्रतापी शासक विजयादित्‍य था।

यादव वंश

  • भिल्‍लभ-V यादव वंश के शासन की स्‍थापना देवगि‍री में की।
  • राजा सिंहण (1210-46 ई०) यादव वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था।
  • इस वंश का अन्तिम शासक रामचंद था जिसका खात्‍मा अलाउद्दीन खिलजी के सैन्‍य जनरल मलिक काफूर ने कर दिया।
  • सिंहण के दरबार में संगीत रत्‍नाकर के रचनाकार सांरधर तथा प्रसिद्ध ज्‍योतिष्‍ज्ञी चंगदेव था।

 

होयसल वंश

  • विष्‍णुवर्द्धन ने इस वंश की स्‍थापना 12वीं शताब्‍दी में की।
  • इस वंश की राजधानी द्वारसमुद्र (कर्नाटक) में थी।
  • होयसल वंश का आर्विभाव 12वीं शताब्‍दी में मैसूर में यादव वंश की एक शाखा से हुआ।
  • विष्‍णुवर्धन ने 1117 ई० में बेलूर के चेन्‍ना केशव मन्दिर का निर्माण कराया।
  • होयसल वंश का अन्तिम शासक वीर बल्‍लाल-।।। था।
  • अलाउद्दीन खिलजी के सैनरू-जनरल ‘मलिक काफूर’ ने ही इस वंश के शासन का अन्‍त किया।

कदंब वंश

  • ‘मयूर शर्मन’ ने इस वंश की स्‍थापना वनवासी (राजधानी) में की थी।
  • इस राज्‍य की स्‍थापना आंध्र-सातवाहन राज्‍य के पतनावेशष्‍ज्ञ पर हुआ।
  • काकुतस्‍थ वर्मन इस वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था।
  • इस वंश के शासन का अन्‍त कर अलाउद्दीन खिलजी ने इस राज्‍य पर अधिकार कर लिया।

 

गंग वंश

  • गंगों के राज्‍य का विस्‍तार मैसूर रियासत के अधिकांश भाग पर था।
  • गंगोंके कारण उपर्युक्‍त सम्‍पूर्ण क्षेत्र गंगावाड़ी के नाम से प्रसिद्ध था।
  • इस राज्‍य की नींव चौथी शाताब्‍दी ई० में दिदिग एवं माधव-l  ने डाली।
  • माधव-l ने दत्‍तक सूत्र पर एक टीका लिखी।
  • गंग राज्‍य की आरम्भिक राजधानी कुलुवल (कोलार) में थी।
  • 5वीं शताब्‍दी में इस वंश के शासक हरिवर्मन ने राज्‍य की राजधानी तलकाड (मैसूर जिला) में स्‍थापित की, कालान्‍तर में राष्‍ट्रकूटों ने इस राज्‍य पर अधिकार कर लिया।

चोल वंश

  • 9वीं शताब्‍दी में पल्‍लवों के पतनावशेष पर चोल वंश की स्‍थापना हुई।
  • चोल राज्‍य की स्‍थापना विजयालय (850-87 ई०) द्वारा की गई।
  • चोल साम्राज्‍य की राजधानी तंजावुर (तंजौर) में थी।
  • विजयालय  द्वार नरकेसरी की उपाधि धारण की गई।
  • आदित्‍य-। द्वारा चोलों का स्‍वतन्‍त्र राज्‍य स्‍थापित किया गया।
  • आदित्‍य-। द्वारा ‘पल्‍लवोंֹ’ को परास्‍त करने के पश्‍चात् कोदण्‍डराम की उपाधिा धारण की गई।
  • चोल नरेश राजाराज-। ने श्रीलंगा पर आक्रमण कर दिया, इससे घबराकर वहाँ के शासक महिम-V ने श्रीलंका के दक्षिणी भाग में शरण ली।
  • राजाराज-। ने अपने द्वारा विजित श्रीलंका को मम्डि़चोलमण्‍डलम नाम दिया।
  • राजाराज-। द्वारा ‘मम्डिचोलमण्‍डलम’ को अपने साम्राज्‍य का एक नया प्रान्‍त घोषित किया तथा पोल्‍लनरूवा को इसकी राजधानी बनाया, वह शैवधर्म का अनुयायी था।
  • राजाराज-। द्वारा ‘तंजौर’के प्रसिद्ध बृहदेश्‍वर अथवा राजराजेश्‍वर मन्दिर का निर्माण करया।
  • राजेन्‍द्र-। के कार्यकाल में चोल साम्राज्‍य का सर्वाधिक विस्‍तार हुआ।
  • राजेन्‍द्र-। ने महिपाल (बंगाल के शासक) को परास्‍त कर गंगैकोंडाचोल की उपाधि धारण की।
  • राजेन्‍द्र-। ने अपनी नवीन राजधानी गंगैकोंडचोलपुरम के निकट एक तालाब चोलगंग्म का निर्माण कराया।
  • चोल शासक राजेन्‍द्र-।। ने प्रकेसरी की उपाधि धारण किया।
  • चोल शासक वीर राजेन्‍द्र द्वारा राजकेसरी की उपाधि धारण की गई।
  • चोल साम्राज्‍य का अ‍न्तिम शासक राजेन्‍द्र-।।। था।
  • विक्रम चोल ने अकाल एवं अभावग्रस्‍त जनता से चिदंबरम् मन्दिर के पुननिर्माण के लिए कर-राजस्‍व वसूल किये।
  • ‘चिदंबरम् मन्दिर’ में स्थित गोविंदराज (विष्‍णु) की मूर्ति को चोल शासक कुलोतुंग-। ने समुद्र में फेंकवा दिया।
  • कालान्‍तर में उपर्युक्‍त मूर्ति का पुनरूद्धार वैष्‍णव आचार्य रामानुज ने इसे तिरूपति मन्दिर में प्राण-प्रतिष्ठित करके किया।

      चोलवंश के प्रमुख शासक

  • विजयालय (850-880 ई0)
  • आदित्‍य-।  (880-907 ई०)
  • परांतक-।  (907-955 ई०)
  • राजाराज-।   (985-1014 ई०)
  • राजेंद्र-।    (1012-1042 ई०)
  • राजाधिराज-।  (1042-1052 ई०)
  • कुलोतुंग-।    (1070-1178 ई०)
  • विक्रम चोल-  (1120-1135 ई०)
  • राजाराज-।।    (1150-1173 ई०)

चोलकालीन स्‍थानीय स्‍वशासन (Local self Govt. during Chola period)

  • वर्तमान दौर में लोकतन्‍त्र को सबसे निचले स्‍तर तक मजबूत करने के उद्देश्‍य से ग्रामीण स्‍वायत्‍तता (Rural Autonomy) बढ़ाने पर जोर दिया जाता है। यह कार्य प्राचीन काल में ही चोल साम्राज्‍य में किया गया-
  • कर- यह सर्वसाधारण लोगों की सभा थी तथा सार्वजनकि कल्‍याण के लिए भूमि का अधिकग्रहण करना इसका प्रमुख कार्य था।
  • ग्रामसभा– ब्राह्मणों की संस्‍था थी, जिसके निम्‍न अवयव थे।
  • बरियम – ग्राम सभा की 30 सदस्‍यीय कार्य संचालन समिति।
  • सम्‍बतर बरियम- बरियम के 12 ज्ञानी व्‍यक्तियों की आर्थिक समिति।
  • उद्यान समिति- बरियम के 12 सदस्‍यों की एक समिति।
  • तड़ाग समिति- बरियम के 6 सदस्‍यों की एक समिति।
  • नगरम्- व्‍यापारियों की एक सभा थी।
  • चोल साम्राज्‍य में प्रशासन (Administration) में सुविधा की दृष्टि से 6 प्रांत थे।
  • चोलकालीन प्रान्‍त (Provinces) मण्‍डलम् कहलाते थे।
  • चोल प्रान्‍त कोट्टम (कमिश्‍नरिया) में विभाजित थे।
  • कोट्टम पुन: जिलों में विभाजित थे उन्‍हें वलनाडु कहा जाता था।
  • चोल प्रशासन की सबसे छोटी इकाई नाड़ (ग्राम-समूह) कहलाती थी।
  • ‘नगरों’ की स्‍थानीय सभा को नगरतार एवं ‘नाडु’ की स्‍थानीय सभा को नाटूर कहा जाता है।
  • चोल प्रशासन में कुल उपज का 1/3 हिस्‍सा भू-राजस्‍व के रूप में लिया जाता था।
  • चोल साम्राज्‍य के पास एक शक्तिशाली जलसेना थी।
  • चोल शासक कुलोतुंग-। के शासन काल में तमिल साहित्‍य के सर्वश्रेष्‍ठ कवि जयन्‍गोंदर को राजकवि का दर्जा प्राप्‍त था।
  • ‘जयन्‍गोंदर’ प्रसिद्ध तमिल रचना कलिंगतु‍पर्णि का सुजन किया।
  • ‘तमिल’ साहित्‍य का त्रिरत्‍न कंबन, पुगलेंदित था औट्टूककुट्टन को कहा जाता है।
  • ‘कन्‍नड़’ साहित्‍य का ‘त्रिरत्‍न’ रन्‍न, पंथ एवं पोन्‍न को कहा जाता है।
  • तंजौर के वृहदेश्‍वर मन्दि के निर्माण को पर्सी ब्राउन ने भारतीय द्रविड़ वास्‍तुकला का चरमोत्‍कर्ष बताया।
  • चोल कला का ‘सांस्‍कृतिक-सार’ इस काल की नटराज प्रतिमा को माना जाता है।
  • अधिकतर चोलशासक शैव धर्म के उपासक थे परन्‍तु वैष्‍णव, बौद्ध तथा जैन धर्मों का स्‍थान भी बरकरार था।
  • इस काल में तिरूत्‍क्‍कदेवर नामक जैन पंडित ने जीवक चिंतामणि (10 वीं शताब्‍दी) नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की।
  • चोल काल में एक अन्‍य लेखक तोलोमोक्ति ने शूलमणि नामक प्रसिद्ध ग्रन्‍थ की रचना की।
  • प्रसिद्ध कवि कंबन ने चोल शासक कुलोतुंग-।।। के शासनकाल में ‘त‍मिल रामायण’ रामावतारम् की रचना की।
  • बौद्ध विद्वान् बुद्धमित्र ने इस काल में प्रसिद्ध व्‍याकरण ग्रंथ रसोलियम (11वीं शताब्‍दी) की रचना, नलवेम्‍ब नाम प्रसिद्ध महाकाव्‍य की रचना पुगलेन्दि ने की।
  • चोलकाल में आम वस्‍तुओं के आदान-प्रदान (Exchange)  का आधार धान (Paddy) था।
  • कावेरीपट्टनम् चोलकाल (10वींशताब्‍दी) का सबसे महत्‍वपूर्ण बंदरगाह था।
  • चोल काल में एक इकाई के रूप में शासित होने वाले बहुत बड़े गाँव को तनियर की संज्ञा दी गई थी।
  • ‘शिव’ के उपासकों को नयनार संत तथा ‘विष्‍णु’ के उपासकों को अलवर संत कहा जात था।

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